मख़लूक़ को किसी ऐसी चीज़ में अल्लाह के बराबर क़रार देना, जो उसी के साथ खास है।
किसी मुसलमान को अधर्मी (इसलाम धर्म त्याग करने वाला) घोषित करना।
ईमान और तक़वा वाले लोग, जो अपने तमाम मामलों में अल्लाह का ध्यान करते हुए, उसके अज़ाब और क्रोध के भय से तथा उसकी प्रसन्नता और जन्नत के लोभ में, उसके आदेशों का पालन करते हैं और उसकी मना की हुई चीजों से बाज़ रहते हैं।
क़बीला, ख़ानदान अथवा रंग एवं नस्ल आदि के आधार पर किसी ऐसे व्यक्ति का पक्ष लेना तथा बचाव करना, जिसका मामला तुम्हारी नज़र में महत्वपूर्ण हो, चाहे वह सत्य पर हो अथवा असत्य पर।
जाने अथवा अनजाने तौर पर सत्य से भटक जाना।
यह इसलाम का विपरीतार्थक शब्द है और इसका अर्थ है, कोई ऐसी बात कहना अथवा कार्य करना, कोई ऐसी आस्था रखना, संदेह जताना या किसी ऐसे कार्य का परित्याग करना, जो इनसान को इसलाम के दायरे से बाहर निकाल दे।
मोमिन के ईमान की वह शक्ति जो आज्ञापालन और नेकी के कामों के कारण प्राप्त होती है तथा उसके ईमान की वह कमज़ोरी जो गुनाहों और हराम कामों में लिप्त होने के कारण पैदा होती है।
अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चार उत्तराधिकारी, जो आपकी मृत्यु के बाद बारी-बारी ख़लीफ़ा बने। इनसे अभिप्राय अबू बक्र सिद्दीक़, उमर बिन ख़त्ताब, उसमान बिन अफ़्फ़ान और अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अनहुम) हैं।
इसलाम और तौहीद
झाड़-फूँक, गाँठ और मंत्र, जिनके माध्यम से जादूगर शैतानी शक्तियों को काम में लाता है और किसी व्यक्ति के शरीर, बुद्धि अथवा इरादे आदि को प्रभावित करके उसे क्षति पहुँचाने का प्रयास करता है।
सत्य के विपरीत काम करना, चाहे वह कथन में हो या क्रिया में या आस्था में।
इससे अभिप्राय हर वह चीज़ है, जो शिर्क की ओर ले जाने वाली हो और क़ुरआन तथा हदीस में उसे शिर्क कहा गया हो, लेकिन वह बड़े शिर्क की सीमा तक न पहुँचती हो।
किसी व्यक्ति का कोई इबादत करते समय अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य को सामने रखना। उदाहरणस्वरूप, कोई इस उद्देश्य से कोई अमल करे कि लोग उसे देखें और उसकी प्रशंसा करें।
आस्था या कर्म के मामले में शरीयत की बताई हुई सीमा से आगे बढ़ना, चाहे वह परिमाण में हो, विशेषण में हो, आस्था में हो या फिर कर्म में।
धर्म में कोई ऐसा नया तरीक़ा जारी करना, जिसका उद्देश्य यह हो कि उसपर अमल करके अल्लाह की इबादत में बढ़ोतरी की जाए।
तौहीद (केवल अल्लाह की इबादत) के माध्यम से अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण करना, आज्ञाकारिता के माध्यम से उस के आदेशों के आगे झुक जाना और बहुदेववाद (शिर्क) तथा बहुदेववादियों से बरी हो जाना।
पूर्ण पुष्टि, जो स्वीकृति और अनुकरण को अनिवार्य करती हो, तथा ईमान नाम है ज़बान से कहने, दिल से विश्वास करने और शरीर के अंगों द्वारा अमल करने का। यह घटता भी है और बढ़ता भी है।
हर वह नई चीज़ जिसे धर्म के भाग के रूप में शुरू किया जाए और शरीयत के अंदर उसका कोई प्रमाण न हो। चाहे उसका संबंध आस्था से हो या इबादत से हो।
ऐसे प्रेम की धारा को अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर मोड़ना, जिसमें श्रद्धा, सम्मान, अधीनता और आज्ञाकारिता आदि पाई जाएँ।
बंदे का धर्मादेशों को बदलने, जैसे हराम को हलाल और हलाल को हराम करने के मामले में अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की बात मानना।
हर वह गुनाह, जिसका दुनिया में कोई दंड निर्धारित किया गया हो, आख़िरत में कोई सज़ा बताई गई हो या जो अल्लाह की लानत (धिक्कार) अथवा उसके क्रोध या ईमान के खंडन, का काराण बन जाता हो।