अल्लाह की निकटता प्राप्त करने के कारणवश, किसी चीज़ को करने के लिए, दिल का पक्का इरादा करना।
नमाज़ी का रुकू से उठकर सीधे खड़े होने के बाद 'रब्बना व लकल-हम्द' कहना।
नमाज़ के अंदर अल्लाह की इबादत करते हुए विशेष अंदाज़ में सर और पीठ को झुकाना।
तक़वा (धर्मपरायणता) यह है कि इनसान अपने तथा महान अल्लाह एवं उसके अज़ाब और क्रोध के बीच, उसके आदेशों के पालन और उसके निषेधों से बचने के द्वारा आड़ बना ले।
अल्लाह के वजूद तथा इस बात का दृढ़ विश्वास कि वही सबका पालनहार, सृष्टिकर्ता, स्वामी और संचालनकर्ता है, वही अकेला इबादत का हक़दार है, उसके अच्छे-अच्छे नाम और उच्च कोटि के गुण हैं एवं वह अकेला है और इन तमाम बातों में उसका कोई साझी नहीं है।
इस बात का दृढ़ विश्वास रखना और पूरा इक़रार करना कि महान अल्लाह, हर वस्तु का स्रष्टा और मालिक है और इस कायनात के सारे कार्य उसी के द्वारा संचालित होते हैं।
ईमान और तक़वा वाले लोग, जो अपने तमाम मामलों में अल्लाह का ध्यान करते हुए, उसके अज़ाब और क्रोध के भय से तथा उसकी प्रसन्नता और जन्नत के लोभ में, उसके आदेशों का पालन करते हैं और उसकी मना की हुई चीजों से बाज़ रहते हैं।
अल्लाह को संपूर्णता और सुंदरता के गुणों के साथ महान मानना और उसे कमियों तथा त्रुटियों से पाक जानना।
इसलाम और तौहीद
सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह को, उसके रब एवं अकेले पूज्य होने जैसी बातों और उसके नामों और सद्गुणों में, जो उसके साथ ख़ास हैं, एक मानना और स्वयं को बहुदेववाद एवं वहुदेववादियों से अलग रखना।
हर वह वस्तु जो अल्लाह की ओर इंगित करती हो और उसका रास्ता बताती हो।
तमाम तरह की विदित एवं निहित इबादतों को, चाहे उनका संबंध कथन से हो या कर्म से हो अथवा आस्था से, अल्लाह के लिए समर्पित करना और उसके सिवा किसी की इबादत से, चाहे वह कोई भी हो, इनकार करना।
यह कहना कि मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं।
आस्थाओं, अहकाम (विधि- विधान) और शिष्टाचारों पर आधारित धर्म का स्पष्ट मार्ग।
अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चार उत्तराधिकारी, जो आपकी मृत्यु के बाद बारी-बारी ख़लीफ़ा बने। इनसे अभिप्राय अबू बक्र सिद्दीक़, उमर बिन ख़त्ताब, उसमान बिन अफ़्फ़ान और अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अनहुम) हैं।
सीधा मार्ग: उच्च एवं महान अल्लाह का वह मार्ग, जिसे उसकी ओर से उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के माध्य से बंदों के लिए निर्धारित किया गया है। यही रास्ता बंदे को अल्लाह तक पहुँचाता है और इसपर चलने का अर्थ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेशों का पालन करना, मना की हुई वस्तुओं से दूर रहना और आपके द्वारा दी गई सूचनाओं की पुष्टि करना है।
इससे अभिप्राय हर वह चीज़ है, जो शिर्क की ओर ले जाने वाली हो और क़ुरआन तथा हदीस में उसे शिर्क कहा गया हो, लेकिन वह बड़े शिर्क की सीमा तक न पहुँचती हो।
अल्लाह की वह वाणी क़ुरआन कहलाती है, जो उसके रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारी गई है, जिसकी तिलावत इबादत है, जो मुसहफ़ों में लिखी हुई है और जो मुतवातिर सनदों से हम तक हस्तांतरित होई है।
जिस चीज़ का आदेश मिला हो उसे करना और जिस चीज़ से मना किया गया हो उसे छोड़ना, वो भी अनुसरण के उद्देश्य से। चाहे जिसका आदेश दिया गया हो और जिस चीज़ से मना किया गया हो, वह कोई बात हो या कर्म हो या आस्था।
एक व्यापक अर्थ वाला शब्द, जिसके अंदर वह सारे गुप्त तथा व्यक्त कथन और कार्य आ जाते हैं, जिन्हें अल्लाह पसंद करता है और जिनसे वह प्रसन्न होता है।
अल्लाह को हर कमी से पवित्र घोषित करना और उसके लिए हर कमाल को सिद्ध करना।
तौहीद (केवल अल्लाह की इबादत) के माध्यम से अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण करना, आज्ञाकारिता के माध्यम से उस के आदेशों के आगे झुक जाना और बहुदेववाद (शिर्क) तथा बहुदेववादियों से बरी हो जाना।