फ़र्ज़ नमाज़ों के अलावा, अल्लाह की मशरू (शरीयत के अंतर्गत) की हुई अन्य नमाज़ें, ततव्वो या नफ़्ल नमाज़ कहलाती हैं।
वह नमाज़, जो इशा की नमाज़ तथा फ़ज्र प्रकट होने के दरमियान पढ़ी जाती है और जिससे रात की नमाज़ का समापन होता है।
जमात के साथ नमाज़ पढ़ना
किसी बात की व्याख्या करना और उसका एक भाषा से दूसरे भाषा में अनुवाद करना।
महान अल्लाह का अपने निकटवर्ती फ़रिश्तों के सामने, अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रशंसा करना।
हर वह बात जिसमें अल्लाह की महिमा बयान की गई हो और उससे प्रेम प्रकट किया गया हो।
वह प्रमाणित सुन्नत नमाज़ें जो फ़र्ज़ नमाज़ों से पहले या उनके बाद पढ़ी जाती हैं।
आमीन एक शब्द है, जो सूरा फ़ातिहा पढ़ने के बाद और दुआ के पश्चात कहा जाता है। इसका अर्थ है, ऐ अल्लाह! ग्रहण कर ले।
नमाज़ की अदायगी के लिए शरीयत की ओर से निर्धारित समय
अभिवादन के शब्द, जो एक मुसलमान अपने मुसलमान भाई से मिलने पर और विदाई के समय कहता है।
बंदे का अपने पालनहार से यह प्रार्थना करना कि उसके गुनाह माफ़ हो जाएँ और उसके बुरे प्रभावों से सुरक्षा प्राप्त हो जाए।
वह दिशा, जिसकी ओर मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं।
काफ़िर जिन्न का नाम, जो आग से पैदा हुआ है।
पाँच नमाज़ें जो दिनरात में अनिवार्य हैं।और वह हैं, ज़ुहर, अस्र, मग़रिब, इशा और फ़ज्र।
ऐसे कथन और कार्य जो 'अल्लाहु अकबर' से शुरू होते हैं और 'अस-सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह' पर समाप्त होते हैं।
दो रकातें जो ईद-उल-फ़ित्र और ईद-उल-अज़हा के दिन विशिष्ट पद्धति में पढ़ी जाती हैं।
जुमे के दिन, ज़ुहर के समय, दो ख़ुतबों के बाद दो रकात नमाज़ पढ़ना।
पाँच फ़र्ज़ नमाज़ों के अतिरिक्त अन्य ऐच्छिक नमाज़ें, जिनकी शरीअत ने अनुमती दी हो।
नमाज़ी का रुकू से उठकर सीधे खड़े होने के बाद 'रब्बना व लकल-हम्द' कहना।
नमाज़ के अंदर अल्लाह की इबादत करते हुए विशेष अंदाज़ में सर और पीठ को झुकाना।
मानव शरीर के उन अंगों तथा भागों को, जिनका खुलना बुरा लगता है और जिन्हें दिखाने में शर्म आती है, जैसे शर्मगाह आदि को विशेष रूप से नमाज़ में छुपाना।
दो सजदे, जो नमाज़ी संदेह तथा विस्मरण आदि के कारण होने वाली कमी की पूर्ति के लिए करता है।
शरीर के अंगों का नमाज़ के सभी क्रिया-संबंधी आधारों में कुछ देर के लिए इस तरह स्थिर हो जाना कि सारे अंग अपने-अपने स्थान पर बराबर हो जाएं।
शरीर का हर वह अंग जिसका ढाँपा जाना ज़रूरी है और उसके खोलने से लज्जा आती है, जैसे आगे और पीछे की शर्मगाह आदि।
वह स्थान, जिसे हमेशा नमाज़ पढ़ने के लिए ख़ास कर दिया गया हो।
शरीयत के आदेशों के अनुपालन के पाबंद व्यक्ति की ओर से फ़र्ज़ नमाज़ को जान- बूझकर, भूलवश या सुस्ती से छोड़ दिया जाना, यहाँ तक कि शरीयत की ओर से उसका निर्धारित समय निकल जाए।