वह अवधि जिसमें स्त्री मासिक धर्म तथा प्रसव के बाद आने वाले रक्त से पवित्र रहती है।
पूरे शरीर पर पानी बहाना, चाहे बड़ी नापाकी(संभोग अथवा स्वप्नदोष आदि से होने वाली नापाकी) से पवित्रता प्राप्त करने की नीयत से हो या मुसतहब (पुण्यकारी) पाकी हासिल करने के लिए हो या बिना किसी नीयत के हो।
फ़र्ज़ नमाज़ों के अलावा, अल्लाह की मशरू (शरीयत के अंतर्गत) की हुई अन्य नमाज़ें, ततव्वो या नफ़्ल नमाज़ कहलाती हैं।
वह नमाज़, जो इशा की नमाज़ तथा फ़ज्र प्रकट होने के दरमियान पढ़ी जाती है और जिससे रात की नमाज़ का समापन होता है।
जमात के साथ नमाज़ पढ़ना
हज या उमरा में दाख़िल होने की नीयत को एहराम कहा जाता है।
किसी बात की व्याख्या करना और उसका एक भाषा से दूसरे भाषा में अनुवाद करना।
हिजरी साल का नौवाँ महीना।
महान अल्लाह का अपने निकटवर्ती फ़रिश्तों के सामने, अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रशंसा करना।
हर वह बात जिसमें अल्लाह की महिमा बयान की गई हो और उससे प्रेम प्रकट किया गया हो।
निकाह के अनुबंध को, कुछ विशेष शब्दों या उनके स्थान पर प्रयोग होने वाले अन्य शब्दों के द्वारा,वर्तमान में या भविष्य में, पूर्णतया अथवा आंशिक रूप से, समाप्त कर देना।
वह प्रमाणित सुन्नत नमाज़ें जो फ़र्ज़ नमाज़ों से पहले या उनके बाद पढ़ी जाती हैं।
आमीन एक शब्द है, जो सूरा फ़ातिहा पढ़ने के बाद और दुआ के पश्चात कहा जाता है। इसका अर्थ है, ऐ अल्लाह! ग्रहण कर ले।
नमाज़ की अदायगी के लिए शरीयत की ओर से निर्धारित समय
माता-पिता की बात मानना और उनके साथ शब्द और कर्म दोनों से अच्छा व्यवहार करना, उनके जीवनकाल में भी और उनके मरने के बाद भी।
अभिवादन के शब्द, जो एक मुसलमान अपने मुसलमान भाई से मिलने पर और विदाई के समय कहता है।
नमाज़ से रोकने वाली गंदगी और नापाकी को दूर करना।
बंदे का अपने पालनहार से यह प्रार्थना करना कि उसके गुनाह माफ़ हो जाएँ और उसके बुरे प्रभावों से सुरक्षा प्राप्त हो जाए।
विशेष प्रकार के धन का निश्चित भाग विशेष रूप से निकालकर कुछ विशेष लोगों को देना ज़कात कहलाता है।
वह दान, जो इनसान अपने धन से अल्लाह की निकटता प्राप्त करने और उसके यहाँ प्रतिफल मिलने की उम्मीद में करता है,सदक़ा कहा जाता है।
वह दिशा, जिसकी ओर मुँह करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं।
धरती का वह स्थान जहाँ मरे हुए व्यक्ति को दफ़्न किया जाता है।
मरे हुए व्यक्ति के पूरे शरीर को शरीयत के बताए हुए तरीक़े के अनुसार पानी से धोना।
काफ़िर जिन्न का नाम, जो आग से पैदा हुआ है।
ऐसे कथन और कार्य जो 'अल्लाहु अकबर' से शुरू होते हैं और 'अस-सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह' पर समाप्त होते हैं।
मरे हुए व्यक्ति को क़ब्र में रखना और उसपर मिट्टी डाल देना।
खाद्य पदार्थ का सदक़ा, जो रमज़ान के रोज़ा समाप्त होने पर वाजिब होता है।
सोने तथा चाँदी, उनसे बनी हुई वस्तु अथवा उनके स्थान पर प्रयुक्त किसी वस्तु का एक निश्चित भाग ज़कात के हक़दारों पर खर्च करना, जब वह निसाब (निर्धारित सीमा, जिसके बाद धन की ज़कात देनी होती है) तक पहुँच जाए और उसपर एक साल गुज़र जाए।
मुसलमानों की क़ब्रों के पास, उनके लिए दुआ करने, उनके हाल से शिक्षा ग्रहण करने और आख़िरत को याद करने के लिए जाना।
मुहर्रम महीने का दसवाँ दिन
जनाज़े के साथ चलना, उसे नमाज़ के स्थान तक ले जाना और दफ़्न करना।
पाँच नमाज़ें जो दिनरात में अनिवार्य हैं।और वह हैं, ज़ुहर, अस्र, मग़रिब, इशा और फ़ज्र।
दो रकातें जो ईद-उल-फ़ित्र और ईद-उल-अज़हा के दिन विशिष्ट पद्धति में पढ़ी जाती हैं।
वह कार्य जो हज अथवा उमरा के एहराम के कारण, एहराम बाँधे हुए व्यक्ति के लिए हराम हो जाते हैं।
जुमे के दिन, ज़ुहर के समय, दो ख़ुतबों के बाद दो रकात नमाज़ पढ़ना।
इबादत की नीयत से शरीर के कुछ ख़ास अंगों को पाक करने वाले जल के द्वारा विशेष रूप से धोना,वज़ू कहलाता है।
मुर्दे के लिए विशेष रूप से की जाने वाली दुआ और नमाज़
पाँच फ़र्ज़ नमाज़ों के अतिरिक्त अन्य ऐच्छिक नमाज़ें, जिनकी शरीअत ने अनुमती दी हो।
रोज़े की नीयत से फ़ज्र प्रकट होने से सूरज डूबने तक सभी रोज़ा तोड़ने वाली वस्तुओं से दूर रहना।
वह बातें और हिकमतें, जिनका ध्यान शरीयत के निर्माण के समय साधारणतया और विशेष रूप से रखा गया है और जिनके अंदर बंदों के हित निहित हैं।
इससे अभिप्राय है, किसी जानवर का रक्त एक विशेष पद्धति से बहाना।
नमाज़ी का रुकू से उठकर सीधे खड़े होने के बाद 'रब्बना व लकल-हम्द' कहना।
नमाज़ के अंदर अल्लाह की इबादत करते हुए विशेष अंदाज़ में सर और पीठ को झुकाना।
मानव शरीर के उन अंगों तथा भागों को, जिनका खुलना बुरा लगता है और जिन्हें दिखाने में शर्म आती है, जैसे शर्मगाह आदि को विशेष रूप से नमाज़ में छुपाना।
दो सजदे, जो नमाज़ी संदेह तथा विस्मरण आदि के कारण होने वाली कमी की पूर्ति के लिए करता है।
शरीर के अंगों का नमाज़ के सभी क्रिया-संबंधी आधारों में कुछ देर के लिए इस तरह स्थिर हो जाना कि सारे अंग अपने-अपने स्थान पर बराबर हो जाएं।
शरीर का हर वह अंग जिसका ढाँपा जाना ज़रूरी है और उसके खोलने से लज्जा आती है, जैसे आगे और पीछे की शर्मगाह आदि।
वह स्थान, जिसे हमेशा नमाज़ पढ़ने के लिए ख़ास कर दिया गया हो।
कुछ विशेष कार्यों की अदायगी के लिए, साल के किसी भी दिन, मक्का में स्थित मस्जिद-ए-हराम की ज़ियारत (दर्शन) करना।
शरीयत के आदेशों के अनुपालन के पाबंद व्यक्ति की ओर से फ़र्ज़ नमाज़ को जान- बूझकर, भूलवश या सुस्ती से छोड़ दिया जाना, यहाँ तक कि शरीयत की ओर से उसका निर्धारित समय निकल जाए।
हर वह वस्तु अथवा कार्य जिसे छोड़ने का आदेश शरीअत के प्रदाता ने दृढ़ता के साथ दिया हो।