विशेष प्रकार के धन का निश्चित भाग विशेष रूप से निकालकर कुछ विशेष लोगों को देना ज़कात कहलाता है।
वह दान, जो इनसान अपने धन से अल्लाह की निकटता प्राप्त करने और उसके यहाँ प्रतिफल मिलने की उम्मीद में करता है,सदक़ा कहा जाता है।
खाद्य पदार्थ का सदक़ा, जो रमज़ान के रोज़ा समाप्त होने पर वाजिब होता है।
सोने तथा चाँदी, उनसे बनी हुई वस्तु अथवा उनके स्थान पर प्रयुक्त किसी वस्तु का एक निश्चित भाग ज़कात के हक़दारों पर खर्च करना, जब वह निसाब (निर्धारित सीमा, जिसके बाद धन की ज़कात देनी होती है) तक पहुँच जाए और उसपर एक साल गुज़र जाए।
दो रकातें जो ईद-उल-फ़ित्र और ईद-उल-अज़हा के दिन विशिष्ट पद्धति में पढ़ी जाती हैं।