अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू हमज़ा या अबू सुमामा, अनस बिन मालिक बिन नज़्र बिन ज़मज़म अन्सारी, नज्जारी, ख़ज़रजी, बसरी एक महान सहाबी थे। सन् 10 में पैदा हुए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सेवक थे। बड़ी संख्या में हदीस वर्णन करने वाले सहाबा में शुमार होते हैं। बसरा में मृत्यु को प्राप्त होने वाले सबसे अंतिम सहाबी हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनके लिए यह दुआ की थी : "ऐ अल्लाह! तू इसे प्रचुर मात्रा में धन एवं बड़ी संख्या में संतान प्रदान कर और इसे जन्नत में प्रवेश करने का सौभाग्य प्रदान कर।" बद्र युद्ध में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ थे उस समय वह किशोर थे और उनका कार्य आपकी सेवा करना था । जब अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- खलीफ़ा बने, तो उनको ज़कात का धन एकत्र करने के लिए बहरैन की ओर भेजने के उद्देश्य से बुला भेजा। इसी बीच उनके पास उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- आए और उनसे इस संबंध में परामर्श किया, तो फ़रमाया कि उनको इस कार्य के लिए भेज दें। वह विवेकी लिखने वाले इन्सान हैं। इसके बाद उनको इस काम के लिए भेज दिया गया। सन 93 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

अबू मह़ज़ूरा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू महज़ूरा औस बिन मेयर अल-क़ुरशी अल-जुमही एक बहुत बड़े सहाबी हैं। उनके तथा उनके पिता के नाम के बारे में अलग-अलग मत हैं। हुनैन युद्ध के बाद मुसलमान हुए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनकी आवाज़ की प्रशंसा की और उनको इस्लाम ग्रहण करने को कहा, तो वह मुसलमान हो गए। उनका कहना है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने स्वयं उनको शुरू से अंत तक अज़ान सिखाई थी। जब उन्होंने अज़ान सीख लिया, तो उनको आपने मक्का में अपना मुअज़्ज़िन नियुक्त कर दिया। उनसे कई हदीसें वर्णित हैं। सन 59 में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उवैस अल-क़र्नी

अबू अम्र उवैस बिन आमिर बिन जज़्अ बिन मालिक अल-क़रनी, एक बहुत बड़े ताबेई और इबादतगुज़ार बुज़ुर्ग थे। असलन उनका संबंध यमन से था। उनहोंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का ज़माना पाया, लेकिन आपको देख नहीं सके। उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- के ज़माने में उनके पास आए और कूफा में बस गए। यह बात साबित है कि वह सबसे उत्तम ताबेई थे। उसैर बिन जाबिर से वर्णित है, उनका कहना है कि उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- के पास जब यमन की सैन्य टुकड़ियाँ मुस्लिम सेना के सहयोग के लिए आतीं, तो उनसे पूछते कि क्या तुम्हारे बीच उवैस बिन आमिर हैं? यह सिलसिला जारी थी कि एक बार उनकी मुलाक़ात उवैस से हो गई, तो फ़रमाया : क्या आप उवैस बिन आमिर हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ। पूछा : क्या आपका संबंध मुराद क़बीले की क़र्न शाखा से है? उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ। पूछा : क्या आपको सफ़ेद दाग़ की बीमारी थी और एक दिरहम के बराबर स्थान को छोड़ अब वह बीमारी ठीक हो चुकी है? उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ। पूछा : क्या आपकी माता जीवित हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ। फ़रमाया : मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है : "तुम्हारे पास उवैस बिन आमिर यमन की ओर से मुस्लिम सेना के सहयोग के लिए आने वाली सैन्य टुकड़ियों के साथ आएगा। उसका संबंध मुराद क़बीले की क़र्न शाखा से होगा। उसे सफ़ेद दाग़ की बीमारी होगी और एक दिरहम के बराबर स्थान को छोड़ ठीक हो जाएगी। उसकी माता होगी, जिसकी वह खूब सेवा करेगा। यदि वह अल्लाह पर क़सम उठा ले, तो अल्लाह उसकी क़सम की लाज रख ले। अगर तुमसे हो सके कि तुम उससे अपने लिए क्षमा याचना कराओ, तो ज़रूर कराना।" अतः आप मेरे लिए क्षमा याचना कीजिए। चुनांचे उन्होंने उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- के लिए क्षमा याचना की। फिर उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनसे पूछा कि आप कहाँ जाना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा कि कूफ़ा। यह सुन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहा कि क्या मैं कूफ़ा के गवर्नर को आपके बारे में एक पत्र लिख दूँ? उन्होंने उत्तर दिया कि मुझे गुमनामी के साथ रहना अधिक पसंद है। वर्णनकर्ता का कहना है कि अगले साल उनके यहाँ का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हज के इरादे से आया, तो उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की उनसे मुलाक़ात हो गई। उन्होंने उससे उवैस के बारे में पूछा, तो कहा कि वह एक टूटे-फूटे घर में रहते हैं और उनके पास जीवन यापन के सामान बहुत कम हैं। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनसे कहा कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है : "तुम्हारे पास उवैस बिन आमिर यमन की ओर से मुस्लिम सेना के सहयोग के लिए आने वाली सैन्य टुकड़ियों के साथ आएगा। उसका संबंध मुराद क़बीले की क़र्न शाखा से होगा। उसे सफ़ेद दाग़ की बीमारी होगी और एक दिरहम के बराबर स्थान को छोड़ ठीक हो जाएगी। उसकी माता होगी, जिसकी वह खूब सेवा करेगा। यदि वह अल्लाह पर क़सम उठा ले, तो अल्लाह उसकी क़सम की लाज रख ले। अगर तुमसे हो सके कि तुम उससे अपने लिए क्षमा याचना कराओ, तो ज़रूर कराना।" चुनांचे वह व्यक्ति उवैस के पास पहुँचा और कहा कि आप मेरे लिए क्षमा याचना कीजिए, तो उन्होंने उत्तर दिया कि आप एक पवित्र यात्रा से अभी-अभी आए हैं, इसलिए आप मेरे लिए क्षमा याचना कीजिए। उन्होंने फिर कहा कि आप मेरे लिए क्षमा याचना कीजिए, तो उन्होंने फिर उत्तर दिया कि आप एक पवित्र यात्रा से अभी-अभी आए हैं, इसलिए आप मेरे लिए क्षमा याचना कीजिए। फिर उन्होंने पूछा क्या कि आप उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- से मिले थे? हाँ में जवाब मिलने पर उन्होंने उसके लिए क्षमा याचना की, तो लोग उनकी महानता को जान गए। यह देख वह वहाँ से कहीं चले गए। उसैर कहते हैं कपड़े के नाम पर उनके पास एक चादर हुआ करती थी। जब भी कोई व्यक्ति उनको देखता, तो कहता कि उवैस को यह चादर कहाँ से मिली? सन् 37 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अय्यूब -अलैहिस्सलाम-

अय्यूब -अलैहिस्सलाम- मूसा -अलैहिस्सलाम- से पहले आने वाले एक धैर्यवान नबी थे। फ़िलिस्तीन के पूरब में स्थित एक स्थान औस अथवा हूरान में रहते थे। अरब इतिहासकारों के निकट वह इबराहीम -अलैहिस्सलाम- की नस्ल से थे। दोनों के बीच पाँच नस्लों का फ़ास्ला था। अल्लाह ने उनको इस तरह आज़माइश में डाला कि वह धन-संतान से वंचित हो गए और 18 वर्षों तक बीमारी से ग्रस्त रहे। इस अवधि में उन्होंने इस हद तक धैर्य से काम लिया कि धैर्य के मामले में उनका उदाहरण दिया जाने लगा। अंततः अल्लाह ने उनकी सारी परेशानियाँ दूर कर दीं।

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औफ़ बिन मालिक अशजई -रज़ियल्लाहु अन्हु-

औफ़ बिन मालिक बिन अबू औफ़ अशजई ग़तफ़ानी एक बड़े सहाबी हैं। हुनैन युद्ध से पहले मुसलमान हुए। वाक़िदी कहते हैं : "ख़ैबर युद्ध के साल मुसलमान हुए और उसमें शामिल भी हुए।" मक्का विजय एवं मूता युद्ध में भी शामिल रहे।

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कअ्ब बिन उजरा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

कअ्ब बिन उजरा अन्सारी, सालिमी, मदनी एक बड़े सहाबी हैं। बैअत-ए-रिज़वान में शामिल रहे।

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बरा बिन आज़िब -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

बरा बिन आज़िब बिन हारिस ख़ज़रजी एक बहुत बड़े सहाबी हैं। कुनयत अबू उमारा है। कुछ लोगों ने अबू अम्र और कुछ लोगों ने अबू अत-तुफ़ैल भी कहा है। स्वयं उन्होंने अपने बारे में बताया है कि बद्र के दिन मुझे और अब्दुल्लाह बिन उमर को अल्लाह के रसूल -सल्लल्लहु अलैहि व सल्लम- ने छोटा बताते हुए वापस कर दिया था। इस तरह वह इस युद्ध में शामिल नहीं हो सके। उनसे वर्णित है कि वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ चौदह युद्धों और एक वर्णन के अनुसार पंद्रह युद्धों में शामिल रहे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से कुछ हदीसों वर्णन की हैं। अपने पिता, तथा अबू बक्र एवं उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुम- जैसे बड़े सहाबा से भी हदीसोॆ से नक़ल की हैं। सन 71 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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बरा बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु-

बरा बिन मालिक बिन नज़्र बिन ज़मज़म एक बड़े सहाबी, प्रतिष्ठावान व्यक्ति और बहादुर इन्सान थे। उन्होंने द्वंद्वयुद्ध में सौ मुश्रिकों का वध किया था। जबकि वह लोग इससे अलग थे, जिनके वध में वह अन्य लोगों के साथ शामिल थे। मुसलमानों ने यमामा युद्ध में मुश्रिकों को पीछे धकेलते हुए एक बाग में शरण लेने पर मजबूर कर दिया। बाग़ के अंदर अल्लाह का शत्रु मुसैलिमा भी मौजूद था। चुनांचे बरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहा : मुसलमानो, मुझको उठाकर उनके अंदर डाल दो। अतः जब उनको उठाकर दीवार के ऊपर रख दिया गया, तो मुश्रिकों पर हमला कर दिया और उनसे लड़कर बाग़ का द्वार खोल दिया, जिसके बाद मुसलमान अंदर चले गए और मुसैलिमा का वध कर दिया। उनकी मृत्यु सन् 20 हिजरी में हुई।

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बुरैदा बिन हुसैब असलमी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

बुरैदा बिन हुसैब बिन अब्दुल्लाह असलमी एक बड़े सहाबी हैं। इब्न अस-सकन कहते हैं : यह उस समय मुसलमान हुए, जब अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हिजरत के दौरान ग़मीम नामी स्थान में उनके पास से गुज़रे। फिर बद्र एवं उहुद युद्धों के गुज़रने तक ग़मीम ही में रहे और इसके बाद मदीना आए। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के बद्र युद्ध से लौटने के बाद मुसलमान हुए। जब बसरा विजय हुआ, तो वहीं बस गए। सन 63 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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कअ्ब बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु-

कअ्ब बिन मालिक अन्सारी सलमी अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के शायर और साथी। अक़बा में शामिल रहे। वह उन तीन लोगों में से एक हैं, जो तबूक युद्ध में शामिल नहीं हुए थे और अल्लाह ने उनकी तौबा क़बूल कर ली।

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अब्दुल्लाह बिन अबू औफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अब्दुल्लाह बिन अबू औफ़ा अलक़मा बिन ख़ालिद बिन हारिस ख़ुज़ाई एक बड़े सहाबी हैं। बैअत-ए-रिज़वान में शामिल थे। कूफ़ा में मरने वाले अंतिम सहाबी हैं। उनकी मृत्यु सन् 87 हिजरी को हुई।

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अत्ताब बिन असीद

अत्ताब बिन असीद बिन अबू अल-ईस बिन उमय्या बिन अब्द-ए-शम्स बिन अब्द-ए-मनाफ़ क़ुरशी उमवी एक बड़े सहाबी हैं। मक्का विजय के दिन मुसलमान हुए। संदेह वालों के लिए बड़े सख़्त और मोमिनों के लिए बड़े नरम थे।

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बिलाल हबशी

बिलाल बिन रबाह हबशी अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के मुअज़्ज़िन थे। उनको बिलाल बिन हमामा भी कहा जाता है। हमामा उनकी माँ का नाम है। जब मुश्रिकों ने एकेश्वरवाद पर क़ायम रहने के कारण उनको बड़ी यातनाएँ दीं, तो अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने इन्हें खरीदकर आज़ाद कर दिया। इसके बाद वह हमेशा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ रहे, आपके लिए अज़ान देते रहे और सारे युद्धों में शामिल हुए। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको और अबू उबैदा बिन जर्राह को एक-दूसरे का भाई बनाया था। अम्मार कहते हैं : बिलाल के अतिरिक्त सबने वह कह दिया, जो मुश्रिकों ने कहलवाना चाहा। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु के पश्चात जिहाद के उद्देश्य से निकल पड़े, यहाँ तक कि सन 20 हिजरी को शाम में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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खनसा -रज़ियल्लाहु अन्हा-

तुमाज़िर बिन्त अम्र बिन हारिस बिन शरीद अर-रियाहिया सुलमिया। लक़ब ख़नसा था और उसी से प्रसिद्ध हुईं। वह नज्द से संबंध रखने वाली अरब की एक सबसे प्रसिद्ध शायरा (कवयित्री) थीं। अधिकतर आयु अज्ञानता (जाहिलीयत) काल में व्यतीत की और अपने दोनों भाई सख़्र एवं मुआविया की मृत्यु पर मरसिया (शोक-गीत) कहने के कारण प्रसिद्ध हुईं। इस्लाम का संदेश मिला, तो मुसलमान हो गईं और अपनी जाति बनी सुलैम के साथ अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास पहुँचीं। उनके चार बेटे थे, जो सन् 16 हिजरी को क़ादसिया युद्ध में शामिल हुए, तो वह उन्हें सुदृढ़ रहकर युद्ध करने पर उभारती रहीं। अतंतः जब चारों शहीद हो गए, तो बोलीं : "सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जिसने मुझे उनकी शहादत का गौरव प्रदान किया।" उनकी मृत्यु सन् 24 हिजरी में हुई।

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अबू रुक़य्या तमीम बिन औस दारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू रुक़य्या तमीम बिन औस बिन हारिसा, कुछ लोगों के अनुसार ख़ारिजा बिन सौद, कुछ लोगों के अनुसार सव्वाद बिन जज़ीमा बिन ज़िरा बिन अदी बिन अद-दार, एक बड़े सहाबी थे। पहले ईसाई थे। मदीना आए और मुसलमान हो गए। उन्होंने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सामने जस्सासा और दज्जाल का क़िस्सा बयान किया था, जिसे आपने उनसे नक़ल करते हुए मिंबर पर बयान कर दिया। (सारे सहाबा नबी से हदीस वर्णन करते हैं, लेकिन इस एक हदीस को अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इन से रिवायत किया है।) इसलिए इसे उनकी विशिष्टताओं में शुमार किया जाता है। तहज्जुद की नमाज़ बहुत ज़्यादा पढ़ा करते थे। एक बार ऐसा हुआ कि एक ही आयत पढ़ते हुए पूरी रात गुज़ार दी। वह आयत थी : "أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ اجْتَرَحُوا السَّيِّئَاتِ أَنْ نَجْعَلَهُمْ كَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَوَاءً مَحْيَاهُمْ وَمَمَاتُهُمْ سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ" [अल-जासिया : 21], सन् 40 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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साबित बिन ज़ह्हाक -रज़ियल्लाहु अन्हु-

साबित बिन ज़ह्हाक बिन ख़लीफ़ा बिन सालबा अन्सारी अशहली। बैअत-ए-रिज़वान में शामिल हुए। खंदक़ के दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सावीर पर पीछे बैठे थे और हमरा अल-असद तक आपका मार्गदर्शन किया था। पेड़ के नीचे बैअत करने वालों में भी शामिल रहे। सन् 45 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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जाबिर बिन अब्दुल्लाह -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

जाबिर बिन अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन हारम अन्सारी सलमी एक बड़े सहाबी थे। उनका शुमार अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से बड़ी संख्या में हदीस वर्णन करने वाले सहाबा में होता है। उनसे भी सहाबा की एक जमात ने रिवायत किया है। उनके साथ-साथ उनके पिता भी सहाबी थे। सहीह हदीस से साबित है कि वह अक़बा की रात में उपस्थित थे। उनका कहना है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- कुल इक्कीस युद्धों में शरीक हुए, जिनमें से उन्नीस युद्धों में उनको आपके साथ रहने का अवसर मिला। उनकी मृत्यु सन 70 हिजरी के बाद हुई। उनको लंबी उम्र मिली थी। वसीयत कर गए थे कि उनके जनाज़े की नमाज़ हज्जाज बिन यूसुफ़ न पढ़े।

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जुबैर बिन मुतइम -रज़ियल्लाहु अन्हु-

जुबैर बिन मुतइम बिन अदी बिन नौफ़ल बिन अब्द-ए-मनाफ़ कुरशी नौफ़ली एक बड़े सहाबी थे। उनका शुमार क़ुरैश के प्रमुख लोगों तथा नसब के जानकारों में होता था। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास बद्र के क़ैदियों को छुड़ाने के लिए आए और आपको मग़्रिब की नमाज़ में सूरा तूर पढ़ते हुए सुना। जिससे खुद उनके ही अनुसार ईमान की किरण पहली बार उनके हिर्दय में पड़ी। इस अवसर पर अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया था : "अगर मुतइम बिन अदी जीवित होते और मुझसे इन बदबूदार लोगों के बारे में बात करते, तो मैं इन्हें उनके हवाले कर देता।" इस हदीस को इमाम बुख़ारी ने रिवायत किया है। जुबैर हुदैबिया और मक्का विजय के बीच में मुसलमान हुए। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि मक्का विजय के अवसर पर मुसलमान हुए। मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- के ख़िलाफ़त काल में सन् 59 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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हुबाब बिन मुनज़िर

हुबाब बिन मुनज़िर बिन जमूह अन्सारी ख़ज़रजी सलमी एक बड़े सहाबी हैं। उनका शुमार बहादुर शायरों (कवियों) में होता है। उनको राय वाला कहा जाता है। सआलबी कहते हैं : "बद्र के दिन उन्होंने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को मश्वरा दिया था और आपने उनका मश्वरा ग्रहण भी किया था। उस समय जिबरील ने उतरकर कहा था कि हुबाब की राय उचित है। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में उनके बहुत-से मत प्रसिद्ध रहे हैं।" उनकी मृत्यु उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त में पचास वर्ष से अधिक की आयु में सन् 20 के आसपास हुई।

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अबूज़र ग़िफ़ारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबूज़र ग़िफ़ारी एक बड़े सहाबी हैं। उनका मशहूर नाम जुनदुब बिन जुनादा है। बहुत पहले मुसलमान हुए थे। कुछ लोगों के अनुसार वह इस्लाम ग्रहण करने वाले चौथे व्यक्ति थे और कुछ लोगों के अनुसार पाँचवें व्यक्ति। उन्होंने ही सबसे पहले अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इस्लाम का सलाम किया था। मक्का में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आए, आपकी बात सुनी और उसी जगह मुसलमान हो गए। इसके बाद अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "तुम वापस चले जाओ और अपनी जाति को इस्लाम के बारे में बताओ, यहाँ तक कि तुम्हारे पास मेरा आदेश आ जाए।" तब उन्होंने कहा : उस अल्लाह की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, मैं इन लोगों के बीच चीखकर अपने इस्लाम का ऐलान करूँगा। यह कहकर वह निकले और मस्जिद पहुँचकर ऊँची आवाज़ में ऐलान किया : मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के रसूल हैं। इतना सुनते ही लोग उनकी ओर दौड़ पड़े और इतना मारा कि वह ज़मीन पर गिर गए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनका इतना ख़याल रखते कि जब वह आते, तो पहले खुद ही सलाम करते और जब अनुपस्थित रहते, तो उनके बारे में पूछते थे। सन् 32 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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जुवैरिया बिन्त हारिस -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म -ए -मोमिनीन जुवैरिया बिन्त हारिस बिन अबू ज़िरार अल-ख़ुज़ाइया अल-मुसतलिक़िया। सन् 5 या 6 हिजरी में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के निकाह में आईं। उनका नाम बर्रह था, जिसे आपने बदल दिया। सन् 56 में मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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हातिब बिन अबू बलतआ

हातिब बिन अबू बलतआ बिन अम्र बिन उमैर बिन सलमा लख़मी, बनी असद बिन अब्द अल-उज़्ज़ा के मित्र। वह बद्र युद्ध में शामिल थे, इसमें सभी लोग एकमत हैं। एक हदीस में है कि हातिब बिन अबू बलतआ का एक दास अल्लाह के रसूल सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास उनकी शिकायत करने आया और बोला कि ऐ अल्लाह के रसूल! हातिब ज़रूर जहन्नम में प्रवेश करेगा। यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि वह बद्र युद्ध तथा हुदैबिया में शरीक हो चुका है।" हातिब ने कहा था : मैं जब से मुसलमान हुआ हूँ, मुझे अल्लाह के बारे में कोई संदेह नहीं रहा। लेकिय बात यह है कि मैं एक असहाय व्यक्ति हूँ और मक्का में मेरे पुत्र एवं भाई रहते हैं। दरअसल यह बात उन्होंने उस समय खेद व्यक्त करते हुए कही थी, जब उन्होंने मक्का वालों को एक पत्र लिखकर उनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के युद्ध की सूचना देने का प्रयास किया था और वह पत्र पकड़ा गया था। इसी घटना के बारे में यह आयत उतरी थी : "हे लोगो जो ईमान लाए हो! मेरे शत्रुओं तथा अपने शत्रुओं को मित्र ने बनाओ।" सन् 30 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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हुज़ैफ़ा बिन यमान -रज़ियल्लाहु अन्हु-

हुज़ैफ़ा बिन यमान अल-अबसी। उनके पिता ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, अतः भागकर मदीना पहुँच गए और बनू अब्द अल-अशहल से मित्रता कर ली। इसके बाद लोग उनको अल-यमान कहने लगे, क्योंकि उन्होंने यमनी नस्ल के लोगों से मित्रता की थी। फिर उन्होंने हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- की माता से शादी कर ली और मदीने ही में हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- पैदा हुए। बाद में दोनों बाप-बेटे मुसलमान हो गए। हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ख़नदक़ तथा बाद के सारे युद्धों में शामिल हुए। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको मदाइन का गवरनर बना दिया और वह अपनी मृत्यु तक वहीं रहे। उनकी मृत्यु उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हत्या तथा अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- की बैअत के चालीस दिन बाद हुई। सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम में है कि अबू दरदा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने अलक़मा से पूछा कि क्या तुम्हारे बीच उस भेद का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति नहीं है, जिसे उनके अतिरिक्त कोई नहीं जानता? वह दरअसल हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- के बारे में पूछ रहे थे। सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम ही में उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित है कि उन्होंने हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से फ़ितने के बारे में पूछा। हुज़ैफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु- इराक़ के सारे युद्धों में शरीक रहे। सन् 36 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

हसन बिन अली -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नवासे, हसन बिन अली बिन अबू तालिब हाशमी, क़ुरशी, अबू मुहम्मद आपका उपनाम था। सन् 3 हिजरी में पैदा हुए। पाँचवें तथा अंतिम ख़लीफ़ा-ए-राशिद हैं। मदीना मुनव्वरा में पैदा हुए। उनकी माता अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पुत्री फ़ातिमा ज़हरा हैं। वह उनके बड़े बेटे थे। बड़े विवेकशील, धैर्यवान और भलाई से प्रेम रखने वाले इन्सान थे। बड़ी ही सुंदर भाषा में बात करते और सुंदर व्यक्तित्व के मालिक थे। पैदल चलकर बीस हज किए थे। सन् 41 हिजरी को खुद ख़िलाफ़त से किनारा कर लिया और उसे मुआविया के हवाले कर दिया। चूँकि इस वर्ष मुसलमानों के मतभेद समाप्त हो गए थे, इसलिए इसे एकीकृती का वर्ष कहा जाता है। इसके बाद वह मदीना चले गए और वहीं रहे, यहाँ तक एक मत के अनुसार ज़हर से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी ख़िलाफ़त की अवधि छह महीने पाँच दिन रही। सन् 50 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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हसन बसरी

हसन बिन यसार बसरी। कुनयत (उपनाम) अबू सईद है। एक विश्वस्त फ़कीह और बड़ी संख्या में हदीस वर्णन करने वाले ताबेई थे। मदीने में सन् 21 हिजरी में पैदा हुए। बसरा वालों के इमाम और अपने युग में पूरी उम्मत के एक बड़े इस्लामी विद्वान थे। उनका शुमार फ़क़ीह, शानदार भाषा में बात करने वाले, बहादुर एवं दुनिया के मोह माया से मुक्त उलेमा में होता है। बसरा में रहते थे। लोगों के दिलों में उनका रोब (धाक) इतना बैठ गया था कि वह शासकों के पास जाते और उनको भलाई का आदेश देते तथा बुराई से रोकते और किसी की कोई परवाह नहीं करते। कई बार उनका सामना हज्जाज बिन यूसुफ़ से हुआ, लेकिन हर बार उनके अत्याचार से बच गए। जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ख़लीफ़ा बने, तो उन्होंने हसन बसरी को लिख भेजा कि : मेरे कंधों पर ख़िलाफ़त का बोझ डाल दिया गया है, अतः मुझे कुछ ऐसे लोग ढूँढकर दीजिए, जो मेरी मदद करें। हसन बसरी ने इसका उत्तर दिया : जहाँ तक दुनिया चाहने वाले लोगों की बात है, तो इस तरह के लोग आपको नहीं चाहिए, और जहाँ तक आख़िरत चाहने वाले लोगों की बात है, तो इस प्रकार के लोग आपके पास जाना नहीं चाहेंगे। अतः आप अल्लाह से मदद माँगिए। उनकी मृत्यु सन् 110 हिजरी में हुई।

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हुसैन बिन अली -रज़ियल्लाहु अन्हु-

हुसैन बिन अली बिन अबू तालिब हाशिमी, अबू अब्दुल्लाह (उपनाम)। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नवासे जो शहीद हुए। फ़ातिमा ज़हरा के पुत्र थे। मदीना में सन् 4 हिजरी में पैदा हुए। एक हदीस में है : (हसन और हुसैन जन्नत के युवकों के सरदार हैं।) नबूवत के घराने में परवरिश पाई। यज़ीद बिन मुआविया के युग में सन् 61 हिजरी में इन्हें मार दिया गया।

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उम्म-ए-हराम बिन्त मिलहान -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म-ए-हराम बिन्त मिलहान बिन ख़ालिद बिन ज़ैद बिन हराम बिन जुनदुब अन्सारिया। अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है, वह अपनी खाला उम्म-ए-हराम बिन्त मिलहान से रिवायत करते हैं कि एक दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनके घर में दोपहर के समय सो गए और कुछ देर बाद हँसते हुए जागे तथा फ़रमाया : "मेरे सामने कुछ लोग लाए गए, जो हरे सागर में अपनी सवारियों पर ऐसे बैठे हैं, जैसे तख़्त पर बादशाह बैठे होते हैं।" उनका कहना है कि यह सुन मैंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह से दुआ कीजिए कि वह मुझे उन लोगों में से बनाए। फिर आप सो गए और कुछ देर बाद हँसते हुए जागे। यह देख मैंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आप किस बात पर हँस रहे हैं? फ़रमाया : "मेरे सामने कुछ लोग लाए गए, जो हरे सागर में अपनी सवारियों पर ऐसे बैठे हैं, जैसे तख़्त पर बादशाह बैठे होते हैं।" उनका कहना है कि मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह से दुआ कीजिए कि मुझे उन लोगों में से बनाए। फ़रमाया : "तुम पहले लोगों में से हो।" अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि उनसे उबादा बिन सामित ने विवाह कर लिया और अपने साथ युद्ध में ले गए। जब समुद्र पार किया और उम्म-ए-हराम बिन्त मिलहान एक जानवर पर सवार हुईं, तो जानवर ने उनको गिरा दिया और इस तरह उनकी मृत्यु हो गई। यह सन् 27 हिजरी की बात है।

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हस्सान बिन साबित

हस्सान बिन साबित बिन मुनज़िर बिन हराम अन्सारी, ख़ज़रजी फिर नज्जारी, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के शायर। उनकी कुनयत अबू अल-वलीद, अबू अल-मुज़र्रब, अबू अल-हुसाम और अबू अब्दुर रहमान है, लेकिन पहली कुनयत अधिक मशहूर है। सहीह हदीस से साबित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- हस्सान -रज़ियल्लाहु अन्हु- के लिए मस्जिद में मिंबर रखावते, जिसपर खड़े होकर वह कविता के माध्यम से उन लोगों की निंदा एवं कटूपहास करते थे, जो कटूपहास द्वारा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बुराई बयान किया करते थे। इसी परिपेक्ष में एक दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कहा था : "जीबरील उस समय तक हस्सान के साथ हैं, जब तक वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का बचाव करते रहते हैं।" इब्न-ए-इसहाक़ कहते हैं : वह अज्ञानता काल (जहिलीयत ) में साठ साल जीवित रहे और इस्लाम ग्रहण करने के बाद साठ साल। इस तरह 120 वर्ष की आयु में सन् 54 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उम्म-ए- हकीम बिन्त हारिस -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म-ए-हकीम बिन्त हारिस बिन हिशाम बिन मुग़ीरा मख़ज़ूमिया एक बड़ी सहाबिया हैं। उहुद युद्ध के दिन मुश्रिकों के साथ रहीं। मक्का विजय के दिन मुसलमान हुईं। उस दिन उनके पति इकरिमा बिन अबू जह्ल यमन की ओर भाग गए थे। वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की अनुमति से उनके पास गईं, तो वह उनके साथ आपके सामने उपस्थित हुए और मुसलमान हो गए। उम्म-ए-हकीम अपने पति के साथ रूमियों से युद्ध करने के लिए निकलीं, तो उनके पति शहीद हो गए, जिसके बाद मर्ज अस-सफ़र युद्ध से कुछ समय पहले ख़ालिद बिन सईद बिन आस ने उनसे शादी कर ली। जब ख़ालिद बिन सईद इस युद्ध में शहीद हो गए, तो उम्म-ए-हकीम ने अपने कपड़े बाँध लिए, हिजाब रख दिया, जबकि उनके शरीर में शादी के समय लगाई गई खुशबू के निशान बाक़ी थे। नहर पर, एक पुल के पास, जिसे इस घटना के बाद उम्म-ए-हकीम पुल कहा गया, युद्ध हुआ। इस अवसर पर उन्होंने सात रूमियों की हत्या उसी खेमे के एक खंबे से कर दी, जिसमें ख़ालिद ने उनसे सुहाग रात मनाया था। उनका निधन सन् 14 हिजरी में हुआ।

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हफ़सा बिन्त उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

उम्म अल-मोमिनीन हफ़सा बिन्त उमर बिन ख़त्ताब। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से निकाह से पहले वह ख़ुनैस बिन हुज़ाफ़ा के निकाह में थीं। अबू उमर कहते हैं : अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको एक तलाक़ दे दी थी और उसके बाद उनको वापस कर लिया था, क्योंकि जिबरील अमीन ने उनसे कहा था : हफ़सा को वापस कर लें, क्योंकि वह एक बहुत ज़्यादा रोज़ा रखने वाली और नमाज़ पढ़ने वाली स्त्री और जन्नत में आपकी पत्नी हैं। उन्होंने अपने भाई अब्दुल्लाह -रज़ियल्लाहु अन्हु- को ग़ाबा नामी स्थान में स्थित उस सदक़े की वसीयत कर दी थी, जिसकी वसीयत उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- उनको कर गए थे। उनकी मृत्यु सन् 45 हिजरी में हुई।

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हकीम बिन हिज़ाम -रज़ियल्लाहु अन्हु-

हकीम बिन हिज़ाम बिन ख़ुवैलिद बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा बिन क़ुसय असदी एक बड़े सहाबी हैं। क़ुरैश के प्रमुख लोगों में शुमार होते थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नबी बनने से पहले आपके मित्र थे। नबी बनने के बाद भी वह आपसे प्रेम रखते थे, लेकिन देर से यानी मक्का विजय के वर्ष मुसलमान हुए। एक दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से पूछा कि मैं अज्ञानता काल (जाहिलीयत) में कुछ काम किया करता था, क्या मुझे उनका सवाब मिलेगा? आपने उत्तर दिया : "तुम उन भलाई के कामों के साथ मुसलमान हुए हो, जो तुम पहले कर चुके हो।"

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हलीमा सादिया

हलीमा सादिया बिन्त अबू ज़ऐब। अबू ज़ुऐब का नाम अब्दुल्लाह बिन हारिस बिन शिजना है। इन्होंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को दूध पिलाया था। अता बिन यसार कहते हैं : अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की रज़ाई (दूध पिलाने वाली) माता, अब्दुल्लाह की बेटी हलीमा आपके पास आईं, तो आप उनके स्वागत में खड़े हुए और उनके लिए अपनी चादर बिछा दी, जिसपर वह बैठ गईं। सन् 8 हिजरी के बाद उनकी मृत्यु हुई।

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ख़ालिद बिन वलीद -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अल्लाह की तलवार (उपाधि), अबू सुलैमान ख़ालिद बिन वलीद बिन मुग़ीरा बिन अब्दुल्लाह बिन उमर बिन मख़ज़ूम क़ुरशी मख़ज़ूमी एक बड़े सहाबी हैं। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में क़ुरैश के प्रतिष्ठित लोगों में शुमार होते थे। उमरा हुदैबिया तक के सारे युद्धों में क़ुरैश के अविश्वासियों के साथ शरीक हुए और फिर सन् 7 हिजरी में ख़ैबर विजय के बाद मुसलमान हुए। कुछ लोगों के अनुसार इससे पहले ही मुसलमान हो गए थे। मक्का विजय के अवसर पर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ शरीक रहे और परीक्षा से गुज़रे। फिर हुनैन एवं ताइफ़ के युद्धों में भी आपके साथ रहे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के आदेश से जाकर उज़्ज़ा नामी बुत को धवस्त कर आए थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनके बारे में कहा था : "ख़ालिद बिन वलीद अल्लाह का एक अच्छा बंदा और अपने खानदान का एक अच्छा व्यक्ति है। वह अल्लाह की एक तलवार है, जिसे अल्लाह ने काफ़िरों के लिए बेनियाम कर दिया है।" सन् 21 हिजरी में उनकी मृत्यु हुई।

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अबू अय्यूब अन्सारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ख़ालिद बिन ज़ैद बिन कुलैब बिन सालबा, जो अबू अय्यूब अन्सारी (से प्रसिद्ध हैं और बनू नज्जार क़बीले से संबंध रखते थे, एक बड़े सहाबी हैं। अक़बा और उसके बाद बद्र, उहुद, खंदक़ तथा अन्य सारे युद्धों में शरीक हुए। एक बहादुर, धैर्यवान, परहेज़गार और युद्ध प्रेमी इन्सान थे। बनू उमय्या के दौर तक जीवित रहे। पहले मदीने में रहते थे और बाद में शाम चले गए। जब यज़ीद ने अपने पिता मुआविया के दौर में कुस्तुनतुनया पर चढ़ाई की, तो एक योद्धा के रूप में साथ हो गए। इस बीच बीमार हो गए, तो वसीयत की कि उन्हें शत्रु की धरती तक ले जाया जाए। जब उनकी मृत्यु हो गई, तो क़ुस्तुनतुनया के दुर्ग के निकट दफ़नाया गया। यह सन् 52 हिजरी की बात है।

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ख़ब्बाब बिन अरत्त -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू अब्दुल्लाह ख़ब्बाब बिन अरत्त बिन जनदला तमीमी, कुछ लोगों के अनुसार ख़ुज़ाई, एक बड़े सहाबी हैं। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में बंदी बना लिए गए और मक्का में बेच दिए गए। इस तरह उम्म-ए-अनमार ख़ुज़ाईया के दास बन गए। वह किसके दास थे, इस संबंध में और भी मत हैं। फिर बनू ज़ोहरा से मित्रता कर ली। बिल्कुल आरंभिक काल में मुसलमान होने वाले लोगों में शामिल थे। बद्र तथा उसके बाद के युद्धों में शामिल रहे। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में तलवार बनाने का काम करते थे, यह बात सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम की हदीस से साबित है। सन् 37 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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ख़दीजा बिन्त खुवैलिद

ख़दीजा बिन्त खुवैलिद बिन असद बिन अब्द अल-उज़्ज़ा बिन क़ुसय कुरशिया असदिया, अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पत्नी और मुसलमानों की माता हैं। अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान तथा आपकी लाई हुई शिक्षाओं की पुष्टि सबसे पहले उन्होंने ने की थी। दरअसल उनके ज़रिए अल्लाह ने संघर्ष के दौर की कठिनाइयों को सहना आसान कर दिया। अल्लाह के रसूल जब भी अपनी कोई बुरी आलोचना सुनते, जो आपको बुरी लगती, तो उनके पास जाते और वह आपकी ढारस बंधातीं तथा ग़म हल्का कर देतीं। सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम में आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अन्हा- को जन्नत में मोती से बने हुए एक घर की ख़ुशख़बरी दी, जिसमें शोर होगा और न थकान। हिजरत से 3 साल पहले मृत्यु को प्राप्त हुइं।

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राफ़े बिन ख़दीज अन्सारी औसी -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

राफ़े बिन खदीज़ बिन राफ़े बिन अदी अन्सारी औसी एक बड़े सहाबी हैं। बद्र के दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के दिन सामने लाए गए, तो आपने छोटा कहकर युद्ध में शामिल होने की अनुमति नहीं दी, उहुद के दिन अनुमति दे दी। अतः उहुद तथा उसके बाद के युद्धों में शरीक रहे। उन्होंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से हदीस वर्णन की है। सन् 74 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

उम्म-ए-सुलैम -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म-ए-सुलैम बिन्त मिलहान बिन ख़ालिद बिन ज़ैद अन्सारिया, अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- की माता तथा उम्म-ए-हराम की बहन, एक बड़ी सहाबिया हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से हदीसें वर्णन की हैं। उनकी उपाधि ग़ुमैसा है। कुछ लोगों ने रुमैसा भी कहा है। नाम सहला है। कुछ लोगों ने रमला, कुछ ने रुमैसह, कुछ ने उनैफा और कुछ ने मुलैका भी कहा है। अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णित एक रिवायत में है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "मैंने जन्नत में प्रवेश किया, तो किसी के चलने की आहट सुनी। मैंने कहा कि यह कौन है? तो उत्तर मिला कि यह अनस की माता ग़ुमैसा बिन्त मिलहान हैं।" अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उम्म-ए-सुलैम के घर के अतिरिक्त किसी के घर में पुरुषों की अनुस्थिति में प्रवेश नहीं करते थे। इसका कारण पूछा गया, तो फ़रमाया : "मुझे उसपर दया आती है, उसका भाई मेरे साथ मारा गया है।" उम्म-ए-सुलैम अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में मालिक बिन नज़्र की पत्नी थीं और दोनों से अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- पैदा हुए थे। जब उनको इस्लाम की सूचना मिली, तो अपनी जाति के साथ मुसलमान हो गईं और अपने पति को भी इस्लाम ग्रहण करने के लिए कहा। लेकिन वह क्रोधित हो गया। फिर शाम गया और वहीं मर गया। उम्म-ए-सुलैम का देहांत सन् 30 हिजरी में हुआ।

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ज़ुबैर बिन अ़व्वाम -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ज़ुबैर बिन अव्वाम बिन ख़ुवैलिद बिन असद बिन अब्द अल-उज़्ज़ा बिन कु़सय बिन क़िलाब अल-क़ुरशी असदी, अबू अब्दुल्लाह (उपनाम), एक बहुत बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सहयोगी, फ़ुफेरे भाई, उन दस लोगों में से एक जिनका नाम लेकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको जन्नत की ख़ुशख़बरी दी थी, और उन छह लोगों में से एक जिनको उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने अपनी मृत्यु के समय किसी एक व्यक्ति को ख़लीफ़ा चुनने की ज़िम्मेवारी दी थी। जब उन्होंने इस्लाम ग्रहण किया था, तो उनका चचा उनको एक चटाई में लपेटकर धुआँ देता था और कहता था कि इस्लाम छोड़ दो, लेकिन उनका उत्तर होता था कि मैं कुफ़्र (अल्लाह का इन्कार) नहीं कर सकता। उरवा कहते हैं : ज़ुबैर के शरीर में तलवार के तीन इतने बड़े-बड़े ज़ख़्मों के निशान थे कि मैं उनके अंदर अपनी उँगलियाँ घुसा देता था। उनमें से दो ज़ख़्म बद्र के दिन लगे थे और एक यरमूक के दिन। सन् 36 हिजरी में शहीद हुए।

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उम्म-ए-हबीबा बिन्त अबू सुफ़यान -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म अल-मोमिनीन रमला बिन्त अबू सुफ़यान सख़्र बिन हर्ब अल-उमविया। सन् 6 हिजरी में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के निकाह में आईं। अपने पति उबैदुल्लाह बिन जहश के साथ हबशा की ओर हिजरत किया। लेकिन जब उनके पति ने उनको अलग कर दिया, तो अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनसे निकाह कर लिया। आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- कहती हैं कि उम्म-ए-हबीबा -रज़ियल्लाहु अन्हा- ने मुझे अपनी मृत्यु के समय बुलाया और कहा कि हमारे बीच भी कभी-कभी उस तरह की बातें हो जाया करती थीं, जो सौतनों के बीच में हुआ करती हैं। अतः आप मुझे इस तरह की बातों से मुक्त कर दें। चुनांचे मैंने उनको मुक्त कर दिया और उनके लिए क्षमा याचना की, तो कहा : आपने मुझे खुश किया, अल्लाह आपको ख़ुश रखे। फिर उन्होंने उम्म-ए-सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हा- को बुला भेजा और उनसे भी उसी तरह की बातें कहीं। सन् 44 हिजरी में मदीने में मृत्यु को प्राप्त हुईं। कुछ लोगों ने उनकी मृत्यु का वर्ष इसके अलावा भी बताया है।

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रुवैफ़े बिन साबित अन्सारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

रुवैफ़े बिन साबित बिन सकन। उनका संबंध बनी मालिक बिन नज्जार से था। एक बड़े सहाबी थे। मिस्र में रहने लगे थे। मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने सन् 46 हिजरी में उनको तराबुल्स का गवरनर बनाया था, जिसके बाद उन्होंने अफ़्रीका में युद्ध किया था। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से हदीस रिवायत की है। बरक़ा में सन् 56 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए। उस समय वह बरक़ा के गवरनर थे।

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ज़ैद बिन अरक़म -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ज़ैद बिन अरक़म बिन ज़ैद बिन क़ैस अन्सारी ख़ज़रजी। उनकी कुनयत (उपनाम) के बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोगों ने अबू उमर कहा है और कुछ लोगों ने अबू आमिर कहा है। एक बड़े सहाबी थे। उहुद के दिन छोटा होने के कारण युद्ध में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली थी। सबसे पहले खंदक़ युद्ध में शामिल हुए। कुछ लोगों के अनुसार सबसे पहले मुरैसी युद्ध में शामिल हुए। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ सत्रह युद्धों में शामिल हुए, यह बात सहीह हदीस से साबित है। उनसे बहुत-सी हदीसें वर्णित हैं। सूरा अल-मुनाफ़िक़ून के अवतरण के संंबंध में उनकी एक घटना सहीह हदीस से साबित है। सिफ़्फ़ीन युद्ध में अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के साथ शामिल हुए और मुख़तार के ज़माने में सन् 68 हिजरी को कूफ़ा में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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ज़ैद बिन साबित अन्सारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ज़ैद बिन साबित बिन ज़ह्हाक अन्सारी ख़ज़रजी। कुनयत अबू ख़ारिजा है। प्रमुख सहाबा में शुमार होते हैं। वह्य लिखने का काम उनके ज़िम्मे था। हिजरत से 11 वर्ष पहले मदीने में पैदा हुए और मक्का में पले-बढ़े। 6 वर्ष के थे कि पिता की हत्या हो गई। 11 वर्ष की आयु में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ हिजरत की। इस्लाम के बड़े अच्छे जानकार एवं विद्वान सहाबी थे। मदीने में शरीयत के अनुसार निर्णय देने, फ़तवा, क़िरात और फ़राइज़ आदि में अग्रणीय थे। सन् 45 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए। उनकी मृत्यु पर अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने फ़रमाया : आज इस उम्मत का एक महान विद्वान चला गया। आशा करता हूँ कि अल्लाह अब्दुल्लाह बिन अब्बास को उनके बाद उनके स्थान को संभालने वाला बना देगा।

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ज़ैद बिन हारिसा

ज़ैद बिन हारिसा बिन शराहील अथवा शुरहबील कलबी। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में बचपन में डाकुओं ने उठा लिया। बाद में उनको ख़दीजा -रज़ियल्लाहु अन्हा- ने ख़रीदा और अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से विवाह के बाद आपको भेंट कर दिया। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस्लाम आने से पहले उनको अपना मुँह बोला बेटा बनाया था, और उन्हें आज़ाद कर दिया और अपनी फुफेरी बहन से शादी कर दी। लोग उनको ज़ैद बिन मुहम्मद कहते रहे, यहाँ तक कि यह आयत उतरी : (उनको उनके पिताओं के नाम से पुकारो।) इनका शुमार सबसे पहले इस्लाम ग्रहण करने वाले सहाबा में होता है। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब किसी युद्ध में उनको भेजते, तो उनको उसका सेनापति बनाते। आप उनसे प्रेम रखते और बड़ा महत्व देते थे। मूता युद्ध में उनको सेनापति बनाया और उसी युद्ध में सन् 8 हिजरी में शहीद हो गए।

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ज़ैद बिन ख़ालिद जुहनी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ज़ैद बिन ख़ालिद जुहनी। कुनयत अबू ज़ुरआ, अबू अब्दुर रहमान या अबू तलहा है। एक बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से हदीस वर्णन किए हैं। हुदैबिया में शामिल रहे। मक्का विजय के दिन उनके हाथ में ज़ुहैना क़बीले का झंडा था। उनकी हदीसें सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम आदि किताबों में हैं। सन् 78 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू तलह़ा अन्सारी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू तलहा, ज़ैद बिन सह्ल बिन असवद नज्जारी अन्सारी एक बड़े सहाबी हैं। उनकी बहुत-सी विशिष्टताएँ हैं। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) तथा इस्लामिक काल के गिने-चुने बहादुर तीरंदाज़ों में शुमार होते हैं। मदीने में पैदा हुए और अक़बा, बद्र, उहुद, खंदक़ एवं सारे युद्धों में शामिल रहे। बड़े बुलंद आवाज़ के इन्सान थे। एक हदीस में है : (सेना में अबू तलहा की आवाज़ एक हज़ार लोगों से उत्तम है।) ख़ैबर के दिन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सवारी में आपके पीछे बैठे थे। उनकी मृत्य कब हुई, इसके बारे में बहुत ज़्यादा मतभेद हैं। किसी ने कहा 32 हिजरी, किसी ने 33 हिजरी, किसी ने 34 हिजरी, किसी ने 50 हिजरी और किसी ने 51 हिजरी कहा है।

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साइब बिन यज़ीद -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

साइब बिन यज़ीद बिन सईद किंदी एक बड़े सहाबी हैं। हिजरत के प्रथम वर्ष से कुछ पहले पैदा हुए थे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हज्जतुल वाद किया, तो वह अपने पिता के साथ मौजूद थे। वह बीमार थे, तो उनकी ख़ाला उनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास लाई । चुनांचे आपने उनके सर पर हाथ फेर दिया और उनके लिए दुआ कर दी। फिर आपने वज़ू किया, तो उन्होंने आपके वज़ू का पानी पिया और ठीक हो गए। उसी दिन उन्होंने आपके शरीर पर नबूवत के चिह्न को देखा था। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको मदीने के बाज़ार की ज़कात वसूलने की ज़िन्मेदारी दी थी। वह मदीने में सबसे अंत में मृत्यु को प्राप्त होने वाले सहाबी हैं। उनकी मृत्यु सन् 91 हिजरी में हुई।

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अबू हुज़ैफ़ा के आज़ाद किए हुए दास सालिम

अबू हुज़ैफ़ा के मुक्त किए हुए दास सालिम, शुरू दौर में इस्लाम ग्रहण करने वाले, बद्र युद्ध में शरीक होने वाले, अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की निकटता प्राप्त करने वाले और धर्म का ज्ञान रखने वाले एक बहुत बड़े सहाबी हैं। जब मदीना आए, तो उन मुहाजिरों की इमामत करते थे, जो मक्का से आए थे, क्योंकि वह उनके अंदर सबसे बड़े क़ुरआन के क़ारी थे। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने फ़रमाया : (अगर मुझे दो व्यक्तियों में से कोई एक व्यक्ति मिल जाए और मैं उसे यह ज़िम्मेवारी सौंप दूँ, तो मैं उसपर भरोसा कर सकता हूँ। एक हैं अबू हुज़ैफ़ा के मुक्त किए हुए दास सालिम और दूसरे हैं अबू उबैदा बिन जर्राह।) क्योंकि यह दोनों लोग उनके जीवन काल ही में मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। उनकी मृत्यु सन् 12 हिजरी में हुई।

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सअ्द बिन अबू वक़्क़ास -रज़ियल्लाहु अन्हु-

साद बिन अबू वक़्क़ास मालिक बिन उहैब -उनको बिन वुहैब भी कहा जाता है- बिन अब्द-ए-मनाफ़ बिन ज़ोहरा बिन क़िलाब क़ुरशी ज़ोहरी। कुनयत अबू इसहाक़ है। एक बहुत बड़े सहाबी हैं। उन दस भाग्यशाली लोगों में शामिल हैं, जिनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनका नाम लेकर जन्नत का सुसमाचार सुनाया था। एक बड़े घोड़सवार थे। सबसे पहले अल्लाह के मार्ग में तीर चलाने का सौभाग्य प्राप्त किया था। उन छह लोगों में भी शामिल थे, जिनको उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने अपनी मृत्यु के समय ख़लीफ़ा चुनने की ज़िम्मेवारी सोंपी थी। उनकी दुआ ग्रहण हुआ करती थी और उनकी इस विशेषता से सब लोग अवगत थे। किसरा (सासानी वंश) के शासन का अंत इनके हाथों हुआ। फ़ितने के समय सबसे अलग-थलग रहे। सन् 55 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू सईद ख़ुदरी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

साद बिन मालिक बिन सिनान अन्सारी, ख़ज़रजी, ख़ुदरी। अपनी कुनयत से मशहूर हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से बड़ी संख्या में हदीस रिवायत करने वाले लोगों में शामिल हैं। सबसे पहले ख़नदक़ युद्ध में शरीक हुए, और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ 12 युद्धों में शामिल रहे। सन् 74 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सईद बिन मुसय्यिब -रह़िमहुल्लाह-

अबू मुहम्मद सईद बिन मुसय्यिब बिन हज़्न क़ुरशी मख़ूज़ूमी एक बड़े ताबेई हैं। सन् 13 हिजरी में पैदा हुए। मदीने वालों के आलिम और अपने युग में ताबेईगण के सरदार। वह कहते हैं : "चालीस वर्षों से मेरी जमात की नमाज़ नहीं छूटी।" उनका कहना है : (मेरी जानकारी में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- द्वारा दिए गए निर्णयों के बारे में मुझ से अधिक अवगत हो। अबू बक्र एवं उमर भी नहीं।) फ़तवा के मामले वह अपने युग में अग्रणीय थे। उनको फ़क़ीह अल-फ़ुक़हा कहा जाता है। वह कहा करते थे : (शैतान जिस चीज़ से मायूस होता है, उसे वह स्त्रियों की ओर से मिल जाती है।) सन् 93 या 94 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सईद बिन जुबैर -रह़िमहुल्लाह-

सईद बिन जुबैर बिन हिशाम वालबी, असदी, कूफ़ी। दरअसल वालिब क़बीले से उनका संबंध दासता से मुक्त करने का था। कुनयत अबू मुहम्मद और कुछ लोगों के अनुसार अबू अब्दुल्लाह थी। इमाम, हदीस के प्रकांड विद्वान, क़ारी तथा मुफ़स्सिर ताबेई। सन् 45 हिजरी को पैदा हुए। जब असफ़हान में रहते थे, तो हदीस बयान नहीं करते थे, लेकिन जब कूफ़ा लौटे, तो हदीस बयान करने लगे। जब इसका कारण पूछा गया, तो बोले : तुम अपने व्यपारिक सामान वहाँ फैलाओ, जहाँ लोग तुमको जानते हों। अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हु- के पास जब कोई कूफ़ा से फ़तवा पूछने आता, तो कहते : क्या तुम्हारे यहाँ उम्म अल-दहमा का बेटा नहीं है? उनकी मुराद सईद बिन जुबैर से हुआ करती थी। रात में इतना रोते थे कि आँखें कमज़ोर हो गईं। हज्जाज ने सन् 95 हिजरी में उनकी हत्या कर दी थी।

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सईद बिन ज़ैद -रज़ियल्लाहु अन्हु-

सईद बिन ज़ैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल बिन अब्द अल-उज़्ज़ा अदवी एक बड़े सहाबी और उन दस भाग्यशाली लोगों में से एक हैं, जिनका नाम लेकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको जन्नत की ख़ुशख़बरी दी थी। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के दार-ए-अरक़म में प्रवेश करने से पहले मुसलमान हुए, हिजरत की तथा उहुद एवं उसके बाद के सारे युद्धों में शरीक हुए। बद्र युद्ध के सयम मदीने में मौजूद नहीं थे, जिसकी वजह से उसमें शामिल न हो सके। यरमूक युद्ध एवं दमिश्म विजय के अवसर पर उपस्थित रहे। सन् 51 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सुफ़यान सौरी

अबू अब्दुल्लाह सुफ़यान बिन सईद बिन मसरूक़ सौरी, कूफ़ी एक मुजतहिद, फ़क़ीह, मुहद्दिस और इमाम हैं। सन् 97 हिजरी को पैदा हुए। यहया अल-क़त्तान कहते हैं : मेरे निकट शोबा से अधिक प्रिय कोई नहीं है, और मेरे निकट कोई उनके बराबर भी नहीं है। लेकिन अगर उनकी मुख़ालफ़त सुफ़यान कर दें, तो मैं सुफ़यान के मत को लेता हूं। एक बार उनपर एक व्यक्ति की नज़र पड़ी तो देखा कि उनके हाथ में कुछ दीनार हैं। उसने कहा : ऐ अबू अब्दुल्लाह! आप यह दीनार लिए हुए हैं? उत्तर दिया : खामोश रहो। अगर यह दीनार न हों, तो बादशाह लोग हमें रूमाल की तरह इस्तेमाल करके फेंक दें। सुफ़यान सौरी सन् 161 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सुफ़यान बिन उययना

सुफ़यान बिन उययना बिन मैमून हिलाली कूफ़ी मुहद्दिस एवं फ़क़ीह थे। बनी हिलाल से उनका संबंध दासता से मुक्ति का था। सन् 107 हिजरी को पैदा हुए। हरम-ए-मक्की के मुहद्दिस थे। कूफ़ा में पैदा हुए, मक्का में रहे और वहीं मृत्यु को प्राप्त हुए। हदीस के हाफ़िज़ तथा विश्वसनीय वर्णनकर्ता थे। प्रकांड विद्वान तथा सम्मानित व्यक्तित्व के मालिक थे। शाफ़िई कहते हैं : (अगर मालिक तथा सुफ़यान न होते, तो हिजाज़ का ज्ञान नष्ट हो जाता।) उन्होंने अपने जीवन में 70 हज किए। सन् 198 को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सलमान फ़ारसी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

सलमान फ़ारसी एक बड़े सहाबी हैं। वह खुद को सलमान अल-इस्लाम कहा करते थे। असलन असफ़हान के मजूसी परिवार से थे। एक मज़बूत शरीर, उचित मत के मालिक और विभिन्न शरीयतों (धर्मों) से अवगत इन्सान थे। उन्होंने ही अहज़ाब युद्ध के अवसर पर मुसलमानों को ख़नदक़ (खाई) खोदने का परामर्श दिया था। उनके बारे में मुहाजिरों एवं अंसार के बीच मतभेद हो गया था। दोनों तरफ़ के लोग कहते थे कि सलमान हम लोगों में से हैं। अंत में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : सलमान हमारे घर के लोगों में से हैं। लंबी आयु प्राप्त करने के बाद सन् 36 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सलमा बिन अकवा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

सलमा बिन अकवा असलमी, हिजाज़ी, मदनी। कुनयत अबू आमिर तथा अबू मुस्लिम है। कुछ लोगों ने अबू इयास भी कहा है। वह एक बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : (हमारे सबसे अच्छे घोड़सवार अबू क़तादा हैं, और हमारे सबसे अच्छे पैदल योद्धा सलमा हैं।) जब उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हत्य कर दी गई, तो सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हु- रबज़ा चले गए, और वहाँ एक औरत से शादी कर ली, जिससे उनके कई बच्चे हुए। मृत्यु से कुछ दिन पहले मदीना आ गए थे। सन् 74 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू दाऊद

अबू दाऊद सुलैमान बिन अशअस बिन इसहाक़ बिन बशीर अज़दी सिजिस्तानी। "अस-सुनन (सुनन-ए-अबू दाऊद)" के लेखक तथा एक मशहूर इमाम हैं। इमाम तिरमिज़ी के गुरू तथा इमाम अहमद के शिष्य थे। सन् 202 हिजरी को पैदा हुए। उन्हें "अल-मरासील" तथा "अल-क़द्र" नामगी किताबें भी लिखी हैं। सन् 275 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सह्ल बिन ह़ुनैफ़ -रज़ियल्लाहु अन्हु-

सह्ल बिन हुनैफ़ अन्सारी औसी। कुनयत अबू साद तथा अबू अब्दुल्लाह है। बद्री याद्धाओं में से थे। शुरू दौर में इस्लाम ग्रहण करने वाले लोगों में से हैं। बद्र युद्ध में शामिल रहे। उहुद के दिन जब लोग भाग निकले थे, उस समय जमे रहे और मृत्यु तक मुक़ाबला करने का संकल्प लिया। वह अपनी तीरंदाज़ी द्वारा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का बचाव करते रहे और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- कहते रहे : (सह्ल को तीर दो। क्योंकि वह आसानी से तीर अन्दाज़ी कर रहा है।) वह ख़नदक़ तथा सभी युद्धों में शरीक रहे। जमल युद्ध के बाद अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको बसरा का गवरनर बनाया था। फिर उनके साथ सिफ़्फ़ीन युद्ध में भी शामिल रहे। सन् 38 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सह्ल बिन साद साइदी -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

सह्ल बिन साद बिन मालिक अन्सारी साइदी एक बहुत बड़े तथा मशहूर सहाबी हैं। कहा जाता है कि उनका नाम हज़्न था, जिसे अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बदल दिया। ज़ोहरी कहते हैं : अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु हुई, तो उनकी आयु पंद्रह वर्ष थी। एक मत के अनुसार वह मदीने में मृत्यु को प्राप्त होने वाले सबसे अंतिम सहाबी हैं। उनकी मृत्यु सन् 91 हिजरी को हुई।

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सौदा बिन ज़मआ

सौदा बिन्त ज़मआ बिन क़ैस बिन अब्द-ए-शम्स क़ुरशिया आमिरिया। मुसलमानों की माता। उनसे सुहैल बिन अम्र के भाई सकरान बिन अम्र ने शादी की थी। जब उसकी मृत्यु हो गई, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनसे विवाह कर लिया। ख़दीजा के बाद आपके निकाह में सबसे पहले वही आई थीं। बाद में उनको डर लगा कि कहीं अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनको तलाक़ न दे दें, इसलिए उन्होंने कहा : आप मुझे तलाक़ न दें। अपने निकाह में रहने दें और मेरी बारी आइशा को दे दें। आपने उनकी बात मान ली और इसी प्रसंग में यह आयत उतरी : (فَلا جُناحَ عَلَيْهِما أَنْ يُصْلِحا بَيْنَهُما صُلْحاً وَالصُّلْحُ خَيْرٌ) आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- कहती हैं : (मैं यदि किसी के स्थान पर होना चाहूँ, तो वह सौदा हैं। उनके अंदर थोड़ी-सी सख़्ती थी, लेकिन बहुत जल्द नरम भी पड़ जाया करती थीं।) सन् 54 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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अबू याला शद्दाद बिन औस -रज़ियल्लाहु अन्हु-

शद्दाद बिन औस बिन साबित बिन मुनज़िर बिन हराम अन्सारी, नज्जारी ख़ज़रजी एक बड़े सहाबी हैं। उनका शुमार प्रतिष्ठि एवं विद्वान सहाबा में होता है। कुनयत अबू याला तथा अबू अब्दुर रहमान है। बैतुल मक़दिस में रहने लगे थे। बड़े इबादत-गुज़ार तथा कर्मनिष्ठ इन्सान थे। ज्ञानी एवं सहनशील भी थे। सन् 58 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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साब बिन जस्सामा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

साब बिन जस्सामा बिन क़ैस बिन रबीआ बिन अब्दुल्लाह बिन यामर लैसी। क़ुरैश के मित्र थे। उनका वद्दान आना-जाना था। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको तथा औफ़ बिन मालिक को एक-दूसरे का भाई बनाया था। सन् 25 हिजरी के आस-पास मृत्यु को प्राप्त हुए।

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तुफ़ैल बिन अम्र दौसी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

तुफ़ैल बिन अम्र बिन तरीफ़ बिन आस बिन सालबा अल-दौसी एक बड़े सहाबी हैं। अपने क़बील के कुछ लोगों के साथ अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आए और बोले : ऐ अल्लाह के रसूल! दौस क़बीले ने अवज्ञा की है, अतः आप उनपर बद-दुआ करें, तो आपने फ़रमाया : "ऐ अल्लाह! दौस को हिदायत दे।" मक्का में मुसलमान हुए और दोबारा वतन वापस हो गए। उमरा-ए-क़ज़ा में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से फिर से मिले और मक्का विजय के अवसर पर उपस्थित रहे। 11 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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शोबा बिन हज्जाज

शोबा बिन हज्जाज बिन वर्द अबू बसताम अज़दी अतकी वासिती। अतकी निस्बत दासता से मुक्ति के कारण थी। इमाम, हदीस के हाफ़िज़ और इस विषय में मोमिनों के अगुआ। 82 हिजरी को पैदा हुए। अपने ज़माने में बसरा वालों के आलिम तथा शैख़ थे। ज्ञान के बहुत बड़े भंडार थे। उनके ज़माने में कोई हदीस में उनसे आगे नहीं था। एक विश्वस्त व्यक्तित्व के मालिक, समालोचक, सदाचारी, दुनिया के माया-मोह से मुक्त और ज्ञान तथा कर्म के अगुआ थे। वर्ष 160 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अल्लाह के नबी सालेह

सालेह -अलैहिस्सलाम- एक अरब नबी थे। उनका संबंध समूद जाति से था। उनको असहाब अल-हिज्र कहा जाता है। हिज्र उनका नगर था, जो आज मदाइन-ए-सालेह के नाम से जाना जाता है। सालेह को नूह तथा आद के बाद अपनी जाति के मार्गदर्शन के लिए भेजा गया था। लेकिन कुछेक को छोड़ लोगों ने उनको झुठला दिया, जिसकी वजह के एक तेज़ आवाज़ का शिकार होकर हलाक हो गए।

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अबू सुफ़यान सख़्र बिन ह़र्ब -रज़ियल्लाहु अन्हु-

सख़्र बिन हर्ब बिन उमय्या बिन अब्द-ए-शम्स बिन अब्द-ए-मनाफ़, अबू सुफ़यान क़ुरशी उमवी। अपने नाम तथा कुनयत से मशहूर हैं। अबू हनज़ला भी कुनयत थी। आम अल-फ़ील (हाथी वाले वर्ष) से दस साल पहले पैदा हुए। मक्का विजय के साल मुसलमान हुए। हुनैन तथा ताइफ़ युद्धों में शामिल रहे। इनका शुमार उन लोगों में होता है, जिनको इस्लाम की ओर आकर्षित करने के लिए सहायताएं प्रदान की गई थीं। उहुद तथा अहज़ाब युद्धों के दिन मुश्रिकों के सरदार बनकर उपस्थित हुए थे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनके इस्लाम ग्रहण करने से पहले ही उनकी पुत्री से विवाह कर लिया था, जो बहुत पहले इस्लाम ग्रहण कर चुकी थीं। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त में 31 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों के अनुसार उनकी मृत्यु 34 हिजरी को हुई।

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अबू उमामा बाहिली -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू उमामा सुदय बिन अजलान बिन हारिस, -कुछ लोगों के अनुसार बिन वह्ब और कुछ लोगों के अनुसार बिन अम्र- बिन वह्ब बिन अरीब बिन वह्ब बिन रियाह बिन हारिस बिन मान बिन मालिक बिन आसर। अपनी कुनयत से मशहुर हैं। वह कहते हैं : जब यह आयत उतरी : (لَقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ), तो मैंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मैं पेड़ के नीचे आपके हाथ पर बैअत करने वालों में शामिल था, तो आपने कहा : "तुम मुझसे हो और मैं तुझसे हूँ।" 81 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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सफ़िय्या बिन्त हुयय -रज़ियल्लाहु अन्हा-

सफ़िय्या बिन्त हुयय बिन अख़तब, मोमिनों की माता। उनका संबंध बनी नज़ीर से था और लावी बिन याक़ूब की नस्ल और फिर मूसा -अलैहिस्सलाम- के भाई हारून बिन इमरान के औलाद से थीं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पत्नी थीं। 50 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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अबुल फ़ज़्ल अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू अल-फ़ज़्ल अब्बास बिन अब्द अल-मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्द-ए-मनाफ़ क़ुरशी हाशिमी, एक बड़े सहाबी तथा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के चचा हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से दो वर्ष पहले पैदा हुए। अज्ञानता काल में हाजियों को पानी पिलाने तथा काबा की देखभाल के काम उनके पास थे। अक़बा में अंसार के साथ होने वाली बैअत के समय उपस्थित रहे, हालाँकि उस समय मुसलमान नहीं हुए थे। न चाहते हुए भी बद्र युद्ध में मुश्रिकों के साथ शरीक हुए। इस युद्ध में गिरफ़तार हो गए, तो अपना तथा अपने भतीजे अक़ील बिन अबू तालिब का फ़िदया देकर आज़ाद हुए और मक्का वापस गए। कुछ लोगों का कहना है कि इसके बाद वह मुसलमान हो गए थे और इस बात को लोगों से छुपा रखा था। मक्का से कुछ सूचनाएँ भी अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को लिख भेजते थे। मक्का विजय से कुछ पहले हिजरत करके मदीना पहुँचे और मक्का विजय के अवसर पर उपस्थित रहे। हुनैन के दिन जब लोग भागने लगे थे, तो ये उस समय जमे रहे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "जिसने अब्बास को कष्ट दिया, उसने मुझे कष्ट दिया। क्योंकि चचा पिता के दर्जे में होता है।" 32 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

अब्बाद बिन बिश्र

अब्बाद बिन बिश्र बिन वक़्श अशहली एक बड़े सहाबी हैं। कअ्ब बिन अशरफ़ की हत्या करने वाले लोगों में शामिल थे। सहीह हदीस में है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अब्बाद बिन बिश्र की आवाज़ सुनी, तो फ़रमाया : "ऐ अल्लाह! अब्बाद पर दया कर।" 12 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

उबादा बिन सामित -रज़ियल्लाहु अन्हु-

उबादा बिन सामित बिन क़ैस अन्सारी ख़ज़रजी एक बड़े साहबी हैं। कुनयत अबू अल-वलीद है। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको तथा अबू मरसद ग़नवी को भाई बनाया था। बद्र के बाद सारे युद्धों में शामिल हुए। 34 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

इब्न-ए-रजब

अबू अल-फ़रज अब्दुर रहमान बिन अहमद बिन रजब सलामी, बग़दादी, फिर दिमश्क़ी। मुहद्दिस, फ़क़ीह, हंबली, मज़बूत ज्ञान के मालिक और विभिन्न शास्त्रों के माहिर। 736 हिजरी को पैदा हुए। सलफ़ के कथनों से ख़ूब अवगत थे। उनकी लिखी हुइ कुछ पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं : "तक़रीर अल-क़वाइद व तहरीर अल-फ़वाइद", "ज़ैल तबक़ात अल-हनाबिला", "फ़त्ह अल-बारी फ़ी शर्ह सहीह अल-बुख़ारी", "जामे अल-उलूम व अल-हिकम" जो नववी द्वारा संकलित अल-अरबईन की शर्ह है और "शर्ह जामे अत-तिरमिज़ी"। 795 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अब्दुर रह़मान बिन समुरा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अब्दुर रहमान बिन समुरा बिन हबीब बिन अब्द-ए-शम्स क़ुरशी एक बड़े सहाबी हैं। कुनयत अबू सईद है। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) में नाम अब्द-ए-कुलाल था, जिसे बदलकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अब्दुर रहमान रख दिया। एक अच्छे सेनापति एवं गवरनर थे। मक्का विजय के दिन मुसलमान हुए। गजवा -ए- तबूक में शामिल रहे। बसरा में बस गए, और सिजिस्तान तथा काबुल आदि को फ़त्ह किया। सिजिस्तान के गवरनर बने। खुरासान पर आक्रमण किया और वहाँ कई विजय प्राप्त की। इसके बाद बसरा लौटे और वहीं सन् 50 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू हुरैरा अब्दुर रहमान बिन सख़्र दौसी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू हुरैरा अब्दुर रहमान बिन सख़्र दौसी एक बहुत बड़े सहाबी हैं। इब्न अब्द अल-बर्र कहते हैं : (उनके तथा उनके पिता के नाम के बारे में बहुत सारे मत हैं, जिन्हें बयान नहीं किया जा सकता।) वह हदीस के ज़ख़ीरे को लोगों तक पहुँचाने वाले और सबसे अधिक हदीसें वर्णन करने वाले सहाबी हैं। एक दिन में 12000 बार सुबहानल्लाह कहा करते थे। कई बार मदीने के गवरनर बने। सन् 57 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों के अनुसार उनकी मृत्यु का वर्ष 59 हिजरी है।

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इब्न अल-जौज़ी

अबू अल-फ़रज, इब्न जौज़ी, अब्दुर रहमान बिन अली बिन मुहम्मद बिन अली बिन उबैदुल्लाह बिन अब्दुल्लाह बिन हुमादी क़ुरशी, तैमी, बकरी, बग़दादी, हंबली। सन् 509 हिजरी को पैदा हुए। इमाम, अल्लामा, हाफ़िज़, मुफ़स्सिर, विभिन्न प्रकार की बहुत-सी किताबों के लेखक, तफ़सीर के समुद्र, सीरत एवं इतिहास के बहुत बड़े माहिर, हदीस के बहुत बड़े जानकार, फ़क़ीह और उलेमा के मतैक्य एवं विभेद से अवगत। उनके पोते अबू अल-मुज़फ़्फ़र कहते हैं : मैंने अपने दादा को मिंबर पर खड़े होकर कहते सुना है : (मैंने अपनी इन दो उँगलियों से दो हज़ार खंड लिखे हैं और मेरे हाथ पर एक लाख लोगों ने तौबा किया है तथा मेरे हाथ पर 20 हज़ार लोगों ने इस्लाम ग्रहण किया है।)सप्ताह में एक बार क़ुरआन ख़त्म कर देते थे। बचपन ही से लोगों को उपदेश देना शुरू कर दिया था। समय गुज़रने के साथ-साथ उनका सम्मान बढ़ता गया और उनके पास लोगों की भीड़ उमंडती गई। सन् 597 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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औज़ाई

अबू उमर अब्दुर रहमान बिन अम्र बिन युहमद अल-औज़ाई इमाम, फ़क़ीह। 88 हिजरी को पैदा हुए। औज़ा नामी मुहल्ले में रहते थे, जो दिमश्क़ के अल-फ़रादीस नामी द्वार के निकट स्थित था। वह एक विश्वस्नीय वर्णनकर्ता थे। उनका एक प्रसिद्ध अलग मसलक भी था, जिसपर एक अवधित तक शाम तथा अनदलुस के फ़क़ीहगण अमल करते रहे, लेकिन बाद में ख़त्म हो गया। उनका कहना था कि जिसने केवल उलेमा के अनोखे कथनों पर अमल किया, वह इस्लाम से निकल जाएगा। 157 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अब्दुर रहमान बिन औफ़ -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू मुहम्मद अब्दुर रहमान बिन औफ़ बिन अब्द-ए-औफ़ बिन अब्द अल-हारिस बिन ज़ोहरा बिन किलाब क़ुरशी ज़ोहरी एक बड़े सहाबी हैं। आम-अल-फ़ील (हाथी वाले वर्ष) के दस साल बाद पैदा हुए। उन दस लोगों में से एक हैं, जिनका नाम लेकर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जन्नत की ख़ुशख़बरी सुनाई थी और मश्वरे में शामिल उन छह लोगों में से एक हैं, जिनके बारे में उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हवाले से नक़ल किया है कि आपकी जब मृत्यु हुई, तो आप उनसे राज़ी थे। इस्लाम के आरंभिक काल में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के दार-ए-अरक़म में दाख़िल होने से पहले मुसलमान हुए, दोनों हिजरत की, और बद्र तथा सारे युद्धों में शामिल हुए। अब्दुर रहमान बिन औफ़ ने मृत्यु के समय वसीयत की थी कि बद्र युद्ध में शामिल हर व्यक्ति को चार-चार सौ दीनार दिए जाएँ, जिनकी कुल संख्या एक सौ थी। सन् 32 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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इब्न -ए- अबी हातिम

अब्दुर रहमान बिन मुहम्मद अबू हातिम बिन इदरीस बिन अल-मुनज़िर तमीमी, हनज़ली, राज़ी मुहद्दिस एवं हदीस के हाफ़िज़ हैं। कुनयत अबू मुहम्मद है। 240 हिजरी को पैदा हुए। उनका घर रय नगर की हनज़ला गली में था। इसी रय की ओर निस्बत की वजह से उनको राज़ी कहा जाता है। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जैसे "अल-जर्ह व अत-तादील", "अत-तफ़सीर" तथा "अर-रद्द अला अल-जहमिया" आदि। 327 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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इब्न-ए-सादी

अब्दुर रहमान बिन नासिर बिन अब्दुल्लाह बिन सादी तमीमी। नज्द से संबंध रखने वाले एक हंबली फ़क़ीह तथा मुफ़स्सिर थे। जन्म तथा मृत्यु क़सीम के उनैज़ा में हुई। 1307 में पैदा हुए। उन्होंने वहाँ 1358 में सबसे पहले एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। उनके सबसे प्रमुख शिष्य शैख़ मुहम्मद अल-उसैमीन हैं। लगभग 30 किताबें लिखी हैं। कुछ पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं : "तैसीर अल-करीम अर-रहमान फ़ी तफ़सीर कलाम अल-मन्नान", "तैसीर अल-लतीफ़ अल-मन्नान फ़ी खुलासह मक़ासिद अल-कुरआन", "अल-क़वाइद अल-हिसान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन", "तरीक़ अल-वुसूल इला अल-इल्म अल-मामूल मिन अल-उसूल", "अल-अदिल्लह अल-क़वाते व अल-बुरहान फ़ी इबताल उसूल अल-मुलहिदीन"। 1376 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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शातबी

अबू इसहाक़ इबराहीम बिन मूसा बिन मुहम्मद लख़मी, ग़रनाती, जो शातबी के नाम से मशहूर हैं। कुनयत अबू इसहाक़ है। फ़क़ीह, उसूली एवं मुफ़स्सिर हैं। अधिक सही बात यह है कि वह ग़रनाता में पैदा हुए। इसका कारण यह है कि इमाम शातबी ग़रनाता में पले-बढ़े और इसकी कोई जानकारी नहीं है कि उन्होंने कभी ग़रनाता छोड़ा है। उनके यात्रा न करने का कराण यह है कि उलेमा ज्ञान की तलाश के लिए यात्रा किया करते थे और इमाम शातबी के नगर ही में ज्ञान मौजूद था। 790 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उबै बिन काब -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू मुनज़िर तथा अबू तुफ़ैल उबय बिन कअ्ब बिन क़ैस बिन उबैद अन्सारी, ख़ज़रजी एक बड़े तथा विद्वान सहाबी थे। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने कहा था : (उबय मुसलमानों के सरदार हैं।) ख़ुद अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनसे पूछा : "ऐ अबू अल-मुनज़िर! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे पास मौजूद अल्लाह की किताब की कौन-सी आयत सबसे महान है?" उन्होंने उत्तर दिया : अल्लाह और उसके रसूल को अधिक ज्ञान है। फिर पूछा : "ऐ अबू अल-मुनज़िर! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे पास मौजूद अल्लाह की किताब की कौन-सी आयत सबसे महान है?" उन्होंने उत्तर दिया : "الله لا إله إلا هو الحي القيوم" यह सुन आपने मेरे सीने में हाथ मारा और फ़रमाया : "ऐ अबू अल-मुनज़िर! तुमको यह ज्ञान मुबारक हो।" आपने उनसे फ़रमाया था : "अल्लाह ने मुझे आदेश दिया है कि मैं तुमको {لم يكن الذين كفروا من أهل الكتاب} पढ़कर सुनाऊँ।" यह सुन उन्होंने कहा : क्या अल्लाह ने सचमुच मेरा नाम लिया है? आपने उत्तर दिया : "हाँ।" उत्तर सुन वह रो पड़े। उनकी मृत्यु के वर्ष के बारे में बहुत ज़्यादा मतभेद है। किसी ने 19 हिजरी कहा है, किसी ने 20 हिजरी कहा है और किसी ने 32 हिजरी कहा है।

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इब्न-ए-तैमिया

अहमद बिन अब्द अल-हलीम बिन अब्द अस-सलाम बिन तैमिया हर्रानी, शैख अल-इस्लाम, इमाम, मुजतहिद और मुजद्दिद। 661 हिजरी को पैदा हुए। धार्मिक एवं बौद्धिक ज्ञान के समुद्र थे। तेज़ी तथा कुशाग्रता के मामले में अल्लाह की निशानी थे। उन्हें तक़ीयुद्दीन कहलाना पसंद नहीं था, लेकिन इसी तक़ीयुद्दीन तथा शैख़ अल-इस्लाम उपाधि से प्रसिद्ध हुए। अल्लामा इब्न दक़ीक़ अल-ईद उनके बारे में कहते हैं : (जब मैं इब्न-ए-तैमिया से मिला, तो मैंने एक ऐसे व्यक्ति को देखा, जिसकी आँखों के सामने सारे ज्ञान का भंडार है। वह उसमें से जितना चाहता है, लेता है और जितना चाहता है, छोड़ता है।) हाफ़िज़ इब्न-ए-हजर कहते हैं : (फ़िक़्ह पढ़ी, तो उसमें प्रवीणता प्राप्त कर ली, और अपनी अलग पहचान बना ली। फिर आगे बढ़े, बहुत सारी किताबें लिखीं, पाठन कार्य किया, फ़तवे दिए और इस तरह अपने युग के उलेमा से आगे निकल गए, तथा हाज़िर दिमाज़ी, मज़बूत इरादे, धार्मिक तथा बौद्धिक ज्ञान और पुराने एवं नए उलेमा के मतों से अवगत होने के मामले में आश्चर्यजनक गहराई के मालिक बन बैठे।) उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी हैं। ज़हबी कहते हैं : (शायद इस समय उनकी लिखी हुई पुस्तकें 4000 या उससे अधिक कापियों में लिखी होंगी।) उनकी कुछ किताबें इस प्रकार हैं : "दरउ तआरुज़ अल-अक़्ल व अन-नक़्ल", "मिनहाज अस-सुन्नह अन-नबिविय्यह", "अल-इस्तिक़ामह", "अल-जवाब अस-सहीह लि-मन बद्दला दीन अल-मसीह", "बयान तलबीस अल-जहमिय्यह", "इक़तिज़ा सिरात अल-मुसतक़ीम लि-मुख़ालफ़ति असहाब अल-जहीम"। 728 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अरवा बिन्त हारिस -रज़ियल्लाहु अन्हा-

अरवा बिन्त हारिस बिन अब्द अल-मुत्तलिब कुरशिया, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की चचेरी बहन तथा अबू सुफ़यान बिन हारिस की सगी बहन। अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने में प्रवीणता के मामले में मशहूर थीं। इब्न-ए-साद ने इनको सहाबियात में शुमार किया है। 50 हिजरी के आस-पास मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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उसामा बिन ज़ैद बिन हारिसा -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

उसामा बिन ज़ैद बिन हारिसा बिन शराहील बिन अब्द अल-उज़्ज़ा बिन इमरउलक़ैस कलबी एक बड़े सहाबी हैं। वह एक बड़े सेनापति, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के प्रिय तथा प्रिय के बेटे, आपके आज़ाद किए दास तथा आज़ाद किए हुए दास के बेटे थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको शाम देश युद्ध के लिए एक ऐसी सेना का सेनापति बनाया था, जिसमें उमर तथा उन जैसे और भी बड़े-बड़े सहाबी थे। वह सेना अभी चली नहीं थी कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु हो गई, तो अबू बक्र सिद्दीक़ ने उसे रवाना कर दिया। उसामा -रज़ियल्लाहु अन्हु- से साबित है कि वह कहते हैं : अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मुझे तथा हसन को लेते और फ़रमाते : (ऐ अल्लाह! मुझे इन दोनों से प्रेम है, तू भी इन दोनों से प्रेम कर।) 54 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अहमद बिन हंबल

इमाम अबू अब्दुल्लाह अहमद बिन मुहम्मद बिन हंबल शैबानी। 164 हिजरी में पैदा हुए। इस्लाम के बड़े इमामों में से एक हैं। उनसे संबंधित बहुत-सी बातें बड़ी मशहूर हैं। उनके बारे में इमाम शाफ़िई कहते हैं : (अहमद आठ शास्त्रों के इमाम हैं। वह हदीस के इमाम हैं, फ़िक़्ह के इमाम हैं, भाषा के इमाम हैं, क़ुरआन के इमाम हैं, निर्धनता के इमाम हैं, निस्पृहता के इमाम हैं, परहेज़गारी के इमाम हैं और सुन्नत के इमाम हैं।) क़ुरआन के सृष्टि होने या ना होने के मसले पर वह अपने मत पर डटे रहे और यातनाएँ सहीं, जो उनके ज्ञान तथा धैर्य का परिचायक है। इसी घटना के बाद उनको अह्ल-ए-सुन्नत के इमाम का लक़ब मिला। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने उस समय सुन्नत को मज़बूत करने का काम किया, जब हर ओर बिदअत फैल चुकी थी। इसी मायने में और भी लोगों को अह्ल-ए-सुन्नत के इमाम की उपाधि मिली हुई है। इसके विपरीत बिद्अत के इमाम हैं, जो उसे जन्म देते तथा फैलाते हैं। अतः सुन्नत के उलेमा की ओर सुन्नत की निस्बत, उसपर अमल करने तथा उसे फ़ैलाने के कारण है, जबकि बिदअती उलेमा की ओर बिदअत की निस्बत उसे जन्म देने तथा उसपर अमल करने के कारण है। इमाम अहमद की कुछ किताबों के नाम इस प्रकार हैं : "अल-मुसनद", "अज़-ज़ुह्द", "अल-अशरिबह", "रिसाला अल-मुसी फ़ी सलातिहि" तथा "अर-रद्द अला अज़-ज़नादिक़ह व अल-जहमिय्यह" आदि। उनके शिष्यों ने उनसे लगभग साठ लाख मसअले नक़ल किए हैं। शरीयत के अक़ीदा तथा कर्म संबंधित मामलों में उनका मसलक एक स्थापित मसलक है। 241 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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असमा बिन्त अबू बक्र सिद्दीक़ -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

उम्म-ए-अब्दुल्लाह असमा बिन्त अबू बक्र अब्दुल्लाह बिन अबू क़ुहाफ़ा उसमान तैमिय्या , एक बड़ी सहाबिया हैं। अबू बक्र सिद्दीक़ -रज़ियल्लाहु अन्हु- की पुत्री, ज़ुबैर बिन अव्वाम की पत्नी, अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की माता और उम्म -ए -मोमिनीन आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- की बहन। उनको ज़ात अन-निताक़ैन की उपाधि से जाना जाता है। सबसे अंत में मृत्यु पाने वाली मुहाजिर महिला थीं। कई हदीसों का वर्णन किया है। लंबी आयु पाई। अंत में देखने की क्षमता खो बैठी थीं। 73 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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असमा बिन्त उमैस -रज़ियल्लाहु अन्हा-

असमा बिन्त उमैस बिन माद अथवा माबद बिन हारिस ख़सअमिय्यह। कुनयत उम्म-ए-अब्दुल्लाह है। एक बड़ी सहाबिया हैं। मैमूना बिन्त हारिस की माँ शरीक बहन हैं। जाफर बिन अबू तालिब के निकाह में थीं। जब उनकी मृत्यु हो गई, तो अबू बक्र सिद्दीक़ के निकाह में आ गईं। उनकी भी मृत्यु हो गई, तो अली बिन अबू तालिब से विवाह हो गया। इनमें से हर एक से उनको बच्चे हुए। पहले हबशा और बाद में मदीने की ओर हिजरत की। इसी लिए इनको दो हिजरत वाली महिला के तौर पर जाना जाता है। अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के बाद मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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उसैद बिन हुज़ैर -रज़ियल्लाहु अन्हु-

उसैद बिन हुज़ैर बिन सिमाक बिन अतीक बिन नाफ़े बिन इमरउल क़ैस बिन ज़ैद बिन अब्द अल-अशहल अन्सारी, औसी, अशहली एक बड़े सहाबी हैं। कुनयत अबू यहया और कुछ लोगों के अनुसार अबू अतीक है। अक़बा की रात नियुक्त 12 नक़ीबों में से एक हैं। बहुत पहले मुसलमान हुए थे। प्रतिष्ठित और बुद्धिमान लोगों में शुमार होते थे। क़ुरआन बड़ी अच्छी आवाज़ में पढ़ते थे। उनकी मृत्यु हुई, तो उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने चारपाई के दो खोंटों के बीच का भाग पकड़ा और ले जाकर बक़ी में रख दिया तथा नमाज़ पढ़ी। यह 20 हिजरी की बात है।

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अशअस बिन क़ैस -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अशअस बिन क़ैस बिन मादीकरिब बिन मुआविया किंदी उन सहाबा में से हैं, जो उस साल मुसलमान हुए, जिस साल अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास बहुत-से प्रतिनिधि मंडल आए। इस्लाम ग्रहण करने तक किंदा के बादशाहों में से थे। उनका नाम मादी करिब था। चूँकि उनके सर के बाल हमेशा बिखरे हुए रहते थे, इसलिए अशअस (बिखरे हुए बालों वाला) की उपाधि से मशहूर हो गए। 40 हिजरी को कूफ़ा में देहांत हुआ। हसन बिन अली -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- ने जनाज़े की नमाज़ पढ़ाई।

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अम्मार बिन यासिर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अम्मार बिन यासिर, कुनयत अबू यक़ज़ान, अनसी मक्की बनू मख़्ज़ूम के द्वारा मुक्त किए हुए दास। बड़े इमाम, एक महान सहाबी, पहले-पहल इसलाम ग्रहन करने वाले लोगों में से हैं। उनकी माता सुमैया बनू मख़्ज़ूम द्वारा मुक्त की हुई दास थीं, जो महान सहाबियात में से थीं। अल्लाह के रासते में अम्मार -रज़ियल्लाहु अन्हु- को बहुत ही कठिन यातनाएं दी गईं। बद्र युद्ध सहित सारे युद्धों में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ उपस्थित रहे। हबशा और मदीना दोनों जगह हिजरत की। इन्हें, इनकी माता एवं इनके पिता को नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जन्नत का सुसमाचार दिया था। सन् 37 हिजरी में विद्रोहियों के दल ने इनकी हत्या कर दी।

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उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू हफ़्स उमर बिन ख़त्ताब बिन अब्द अल-उज़्ज़ा क़ुरशी अदवी, अमीर अल-मोमिनीन। फ़ारूक़ उपाधि है। शुरू दौर में हिजरत करने वाले लोगों में शामिल थे। बैअत-ए-रिज़वान में सम्मिलित रहे और उन दस लोगों में से एक हैं, जिनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जन्नत की ख़ुशख़बरी दी थी। सारे युद्धों में शामिल रहे। अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- के मंत्री रहे। और उनके बाद ख़लीफ़ा बने। वह पहले ख़लीफ़ा थे, जिनको अमीर अल-मोमिनीन कहा गया। कोई ऐसा सहाबी नहीं था, जिसने उनके हाथ पर बैअत न की हो, चाहे वह मदीने के अंदर रहा हो या बाहर। 22 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उमर बिन अबू सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू हफ़्स उमर बिन अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्द अल-असद बिन हिलाल बिन अब्दुल्लाह बिन उमर बिन मख़ज़ूम क़ुरशी मख़ज़ूमी। उनकी माँ अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के निकाह में आ गईं थीं और उनका पालन-पोषण अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के घर में हुआ था। आप दूध कि रिश्ते से उनके चचा थे। हिजरत से दो वर्ष या इससे कुछ पहले पैदा हुए तथा अब्दूलमलिक बिन मरवान की ख़िलाफत में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अम्र बिन आस -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अम्र बिन आस बिन वाइल क़ुरशी सहमी एक बहुत बड़े सहाबी हैं। अबू अब्दुल्लाह कुनयत है। कुछ लोगों ने अबू मुहम्मद भी कहा है। क़रैश के बड़े चतुर इन्सान तथा एक गणमान्य व्यक्ति थे । उनकी कुशाग्रता एवं दूरअंदेशी की मिसाल दी जाती है। 8 हिजरी के आरंभ में हिजरत करके अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास ख़ालिद बिन वलीद तथा ख़ाना-ए-काबा के निगरान उसमान बिन तलहा के साथ आए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इन लोगों के आने तथा इस्लाम ग्रहण करने से बड़ी ख़ुशी हुई। अम्र को कुछ सेनाओं का सेनापित भी बनाया। अबू उसमान अन-नहदी से सहीह सनद से साबित है, जो अम्र से रिवायत करते हैं कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको ज़ात अस-सलासिल युद्ध के लिए भेजी जाने वाली सेना का सेनाध्यक्ष बनाया था, जबकि उसमें अबू बक्र तथा उमर जैसे लोग मौजूद थे। मृत्यु 42 हिजरी को हुई।

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अबू मिहजन सक़फ़ी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू मिहजन अम्र बिन हबीब बिन अम्र बिन उमैर बिन औफ़ सक़फ़ी एक बड़े सहाबी हैं। अज्ञानता काल (जाहिलीयत ) तथा इस्लाम युग के बहादुर एवं दानशील शायरों में से एक हैं। 9 हिजरी में मुसलमान हुए। कुछेक हदीसें रिवायत कीं। शरबा के बड़े रसिया थे। अतः उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको कई बार शरई दंड दिया और फिर देश से निकाल कर समुद्र के एक टापू की ओर भेज दिया, जहाँ से भाग खड़े हुए और साद बिन अबू वक़्क़ास के पास पहुँच गए, जो क़ादसिया में फ़ारसियों से युद्ध लड़ रहे थे। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने साद -रज़ियल्लाहु अन्हु- को पत्र लिखकर उनको क़ैद कर लेने को कहा, तो उन्होंने उनको क़ैद कर लिया। इसी बीच जब एक दिन भीषण युद्ध होने लगी, तो अबू मिहजन ने साद की पत्नी सलमा से विनती की कि उनके बंधन खोल दें, साथ ही वादा भी किया कि यदि बच गए, तो दोबारा ख़ुद ही क़ैद में वापस लौट आएँगे। इस संदर्भ में कुछ शेर भी सुनाए। अतः सलमा ने उनको जाने दिया और वह बड़ी बहादुरी से लड़े। युद्ध समाप्त हुआ, तो दाबारा ख़ुद से आकर क़ैद हो गए। जब सलमा ने यह सारी बातें साद को बताईं, तो उनको आज़ाद कर दिया और कहा कि मैं तुम्हें कभी दंड नहीं दूँगा। अबू मिहजन ने भी कहा कि अल्लाह की क़सम मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा। फिर उन्होंने अपना किया हुआ वादा पूरा करके दिखाया भी। अज़रबैजान या जुरजान में 30 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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इब्न उम्म-ए-मकतूम

इब्न-ए-उम्म-ए-मकतूम। अधिकतर लोगों के निकट नाम अम्र, जबकि कुछ लोगों के निकट अब्दुल्लाह बिन क़ैस बिन ज़ाइदा कुरशी आमिरी है। उनकी माँ का नाम उम्म-ए-कुलसूम आतिका अल-मख़ज़ूमिया है। एक बड़े सहाबी हैं। दृष्टि बाधित थे। मक्का में मुसलमान हुए तथा बद्र युद्ध के बाद मदीना आए। मदीना में बिलाल -रज़ियल्लाहु अन्हु- के साथ अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के लिए अज़ान देते थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब किसी युद्ध पर जाते, तो आम तौर पर मदीने में उनको अपने स्थान पर छोड़ जाते थे। उनसे हदीसें भी वर्णित हैं। क़ादसिया युद्ध में शामिल हुए। हाथ में एक काला झंडा था और एक पूरे शरीर को ढाँपने वाला कवच पहने हुए थे। इस युद्ध में दृष्टि बाधित होने के बावजूद युद्ध किया। युद्ध के बाद मदीना लौटे और उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की मृत्यु से कुछ पहले मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों का कहना है कि 15 हिजरी में क़ादसिया युद्ध में मारे गए।

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अबू दरदा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अब दरदा उवैमिर बिन ज़ैद बिन क़ैस, कुछ लोगों के अनुसार उवैमिर बिन आमिर, कुछ लोगों के अनुसार बिन अब्दुल्लाह और कुछ लोगों के अनुसार बिन सालबा बिन अब्दुल्लाह अन्सारी ख़ज़रजी, एक बड़े सहाबी, आदर्श व्यक्तित्व के मालिक इन्सान, इमाम, इस उम्मत के हकीम, दमिश्क़ के क़ाजी और दमिश्क़ में क़ारियों के सरदार हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के सामने क़ुरआन की तिलावत करने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले सहाबा में शुमार होते हैं। उनका शुमार उन लोगों में भी होता है, जिन्होंने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के जीवन काल में ही क़ुरआन को एकत्र किया था। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त काल में 32 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों ने उनकी मृत्यु के वर्ष के बारे में और भी बातें कही हैं।

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उम्म-ए-हानी -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म-ए-हानी बिन्त अबू तालिब अब्द-ए-मनाफ़ बिन अब्द अल-मुत्तलिब बिन हाशिम क़ुरशिया, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की चचेरी बहन, एक सम्मानित तथा प्रतिष्ठित सहाबिया। नाम फखिता था। कुछ लोगों ने हिंद भी कहा है। मक्का विजय के दिन मुसलमान हुईं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से कुछ हदीसें भी रिवायत की हैं। (अपने भाई) अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के बाद लंबे समय तक जीवित रहीं।

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फ़ातिमा बिन्त क़ैस -रज़ियल्लहु अनहा-

फ़ातिमा बिन्त क़ैस फ़िहरिया। यह फ़ातिमा बिन्त क़ैस बिन ख़ालिद अल-अकबर बिन वह्ब हैं। ज़ह्हाक बिन क़ैस की बहन, तथा एक बड़ी सहाबिया हैं। एक शरीफ़ महिला थीं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से कई हदीसें रिवायत की हैं। मुआविया की ख़िलाफ़त के ज़माने में मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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फ़ज़्ल बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

फ़ज़्ल बिन अब्बास बिन अब्द अल-मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्द-ए-मनाफ़ क़ुरशी हाशिमी एक बड़े सहाबी हैं। कुनयत अबू मुहम्मद और अबू अब्दुल्लाह है। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के चचेरे भाई हैं। अब्बास के सबसे बड़े बेटे हैं। उन्हीं के नाम से अब्बास की कुनयत है। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ सन् 8 हिजरी में मक्का विजय में शामिल रहे और आपके साथ हुनैन युद्ध भी लड़े। हुनैन के दिन जब लोग भाग खड़े हुए तो आपके साथ खड़े रहने वाले आपके परिवार के लोगों और साथियों में शामिल रहे। हज्जतुल वदा के अवसर पर भी आपके साथ रहे। मुज़दलिफ़ा से मिना तक अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सवारी के पीछे बैठने का सौभाग्य प्राप्त किया। यही कारण है कि उनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पीछे बैठने वाले की उपाधि से जाना जाता है। आपकी मृत्यु के समय भी उपस्थित रहे और आपको गुस्ल देने में शरीक रहे। अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- को पानी उंडेल उंडेल कर देते थे। उनकी मृत्यु कब हुई, इस बात पर वर्णनकर्ताओं के अलग-अलग मत हैं। इस संबंध में सबसे सही रिवायत यह है कि वह जिहाद के उद्देश्य से शाम की ओर निकले और उरदुन के इलाक़े में ताऊन-ए-अमवास के शिकार होकर सन् 18 हिजरी में उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के काल में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू अल-आस बिन रबी

अबू अल-आस बिन रबी बिन अब्द-ए-शम्स बिन अब्द-ए-मनाफ़ बिन क़ुसय बिन किलाब क़ुरशी अबशमी, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के दामाद, आपकी पुत्री ज़ैनब के पति और उन उमामा के पिता, जिनको अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- नमाज़ की अवस्था में भी उठाए होते थे। उनका नाम लक़ीत है। हालाँकि इसके अतिरिक्त और भी नाम बताए गए हैं। उनकी माँ हाला बिन्त ख़ुवैलिद ख़दीजा बिन्त ख़ुवैलिद की बहन हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनके रिश्ता निभाने की प्रशंसा की है और फ़रमाया है : "उसने मुझसे बात की तो सच बोला और वादा किया तो उसे निभाया।" मक्का विजय से पहले मुसलमान हुए और सन् 12 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उम्म-ए- कुलसूम -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म-ए-कुलसूम बिन्त मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्द अल-मुत्तलिब क़ुरशिया हाशिमिया। उनकी माता ख़दीजा बिन्त खुवैलिद हैं। उनसे उतैबा बिन अबू लहब ने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नबी बनने से पहले निकाह किया था । जब आप नबी बन गए और अल्लाह ने सूरा लहब उतारी, तो उतैबा से उसके पिता अबू लहब ने कहा कि अगर तुम मुहम्मद की पुत्री को तलाक़ नहीं देते हो, तो हमारा संबंध छिन्न-भिन्न हो जाएगा। अतः उसने तलाक दे दी।परंतु उस समय तक उअनकी रुखसती नहीं हुई थी। इसके बाद मक्का में अपने पिता के साथ रहने लगीं। अपनी माता के साथ मुसलमान हुईं। जब स्त्रियों ने आपसे बैअत की, तो उन्होंने भी अपनी बहनों के साथ बैअत की और हिजरत करके मदीना आ गईं। फिर यहीं रहने लगीं। जब अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बेटी रुक़य्या -रज़ियल्लाहु अन्हा- की मृत्यु हो गई, तो आपने उसमान बिन अफ़्फ़ान से उनका निकाह कर दिया। यह रबी अल-अव्वल 3 हिजरी की बात है। इसी साल जुमादा अल-आख़िरह में उनकी रुख़सती भी हो गई। उनके निकाह में ही थीं कि 9 हिजरी में उनकी मृत्यु हो गई। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- से उनको कोई संतान नहीं थी।

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अबू मरसद ग़नवी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू मरसद कन्नाज़ बिन हुसैन ग़नवी एक बड़े सहाबी हैं। उनका शुमार प्रमुख और प्रतिष्ठित सहाबा में होता है। बद्र, उहुद, ख़नदक़ तथा सभी युद्धों में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ शामिल रहे। अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त काल में मदीने में सन् 12 हिजरी में 66 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मारिया क़िब्तिय्या

मारिया क़िबतिया अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की आज़ाद की हुई दासी तथा आपके पुत्र इबराहीम की माँ हैं। 16 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुईं। उनके जनाज़े में शरीक होने के लिए उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- खुद लोगों को एकत्र करते हुए दिखे और उनके जनाज़े की नमाज़ भी पढ़ाई। उनको बक़ी कब्रिस्तान में दफ़न किया गया।

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इमाम मालिक

अबू अब्दुल्लाह मालिक बिन अनस बिन अबू आमिर असबही मदनी शैख़ अल-इस्लाम, इस उम्मत के प्रमाण, इमाम-ए-दार अल-हिजरह और चार इमामों में से एक। 93 हिजरी को पैदा हुए। इस उम्मत के सारे उलेमा का उनकी इमामत तथा हिफ़्ज़ एवं पड़ताल को स्वीकार करने के संबंध में मतैक्य है। शाफ़िई कहते हैं : "जब उलेमा का ज़िक्र हो, तो मालिक सितारा हैं।" उनसे वर्णित हदीस सबसे सहीह हदीसों में से है। फ़िक़्ह में उनको इमामत का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने "अल-मुवत्ता" नामी किताब लिखी है। 179 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुजाहिद बिन जब्र

अबू हज्जाज मुजाहिद बिन जब्र, क़ैस बिन साइब मख़ज़ूमी के आज़ाद किए हुए दास, ताबेई हैं। इमाम तथा क़ारियों एवं मुफ़स्सिरों के सरदार हैं। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के दौर में 21 हिजरी को पैदा हुए। अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हु- से बड़ी संख्या तथा अच्छे अंदाज़ में हदीसें रिवायत कीं, क़ुरआन सीखा, तफ़सीर एवं फ़िक़्ह का ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही अबू हुैरा एवं आइशा आदि से भी ज्ञान अर्जित किया। 83 वर्ष की आयु में मक्का में सजदे की अवस्था में सन् 104 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अब्दुल्लाह बिन जाफ़र -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू जाफ़र अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन अबू तालिब बिन अब्दुल मुत्तलिब क़ुरशी हाशिमी एक बड़े सहाबी हैं। उनके पिता का मूता युद्ध में देहांत हो गया, तो उनका लालन-पालन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने किया। बड़े सम्मानित एवं दानशील व्यक्ति थे।

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अब्दुल्लाह बिन रवाहा

अब्दुल्लाह बिन रवाहा बिन सालबा बिन इमरउलक़ैस अन्सारी, ख़ज़रजी एक बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के एक अन्सारी शायर, अक़बा की रात नियुक्त किए गए आपके एक नक़ीब और बद्री सहाबी थे। जाहिलियत तथा इस्लाम काल में बड़े प्रतिष्ठित इन्सान थे। मूता युद्ध में सन् 8 हिजरी को मारे गए।

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अब्दुल्लाह बिन जूबैर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर बिन अव्वाम असदी क़ुरशी एक बड़े सहाबी और एक बड़े सहाबी ज़ुबैर बिन अव्वाम के बेटे हैं। सन् 2 हिजरी को इनका जन्म हुआ। उनकी माँ असमा बिन्त अबू बक्र सिद्दीक़ हैं। अपने युग में क़ुरैश के प्रख्यात घुड़सवार थे। बहुत-से युद्धों में यादगार कारनामे अंजाम दिए। नौ वर्षों तक ख़लीफ़ा रहे। 73 हिजरी में उनकी हत्या कर दी गई।

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अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू अब्बास अब्दुल्लाह बिन अब्बास बिन अब्द अल-मुत्तलिब हाशिमी, अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के चचेरे भाई, एक बहुत बड़े सहाबी, इस उम्मत के ज्ञान के भंडार, अपने युग के फ़क़ीह, तफ़सीर के इमाम और बहुत बड़ी संख्या में हदीस रिवायत करने वाले सहाबा में से एक। उनकी विशेषताएँ तथा विशिष्टताएँ बहुत ज़्यादा हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनके लिए दुआ करते हुए कहा था : "ऐ अल्लाह! इसे इस्लाम की समझ तथा क़ुरआन की तफ़सीर का ज्ञान प्रदान कर।" 68 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू बक्र सिद्दीक़ -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू बक्र सिद्दीक़ अब्दुल्लाह बिन अबू क़ुहाफ़ा उसमान बिन आमिर क़ुरशी अततैमी, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के बाद इस्लामी दुनिया की बागडोर संभालने वाले, सबसे पहले इस्लाम ग्रहण करने वाले पुरुष, उन दस लोगों में एक जिनको जन्नत की ख़ुशख़बरी दी गई थी, और अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के गुफ़ा के साथी। गुफ़ा में आपके साथ रहने की घठना का उल्लेख अल्लाह ने क़ुरआन में भी किया है। आपने उनकी पुत्री से विवाह किया था। सभी युद्धों में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ शामिल रहे। आप अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के बाद इस उम्मत के सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति हैं। आप जब बीमार थे तथा जिसमें आपकी मृत्यु भी हो गई, उसमें उन्होंने लोगों को नमाज़ पढ़ाई। उनके बारे में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "जिन लोगों ने अपने धन एवं साथ द्वारा मुझपर सबसे अधिक उपकार किया है, उनमें से एक अबू बक्र हैं। यदि मैं अपने पालनहार के अतिरिक्त किसी को परम मित्र बनाता तो अबू बक्र को बनाता। लेकिन हमारे लिए इस्लाम का भाईचारा एवं दोस्ती ही काफ़ी है।" इस हदीस को इमाम बुख़ारी ने रिवायत किया है। 13 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू मुहम्मद अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस क़ुरशी सहमी एक बड़े सहाबी हैं। विद्वान तथा इबादतगुज़ार सहाबा में से हैं। सन् 7 हिजरी को इस्लाम ग्रहण किया और हिजरत की। कुछ युद्धों में भी शरीक रहे। ज्ञान तथा कर्म में बड़े ऊँचे स्थान के मालिक थे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से प्रचुर मात्रा में ज्ञान प्राप्त किया था। 65 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू मूसा अशअरी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू मूसा अब्दुल्लाह बिन क़ैस बिन सुलैम बिन हज़्ज़ार अशअरी, एक बड़े सहाबी हैं। आरंभिक दौर में मक्का में मुसलमान हुए, हबशा की ओर हिजरत की और बहुत सारी हदीसें रिवायत कीं। इबादतगुज़ार, फ़क़ीह, हदीस के ज्ञाता और हिकमत वाले थे। सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम में है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "ऐ अल्लाह! अब्दुल्लाह बिन क़ैस के गुनाह माफ़ कर दे और उसे क़यामत के दिन सम्मानित स्थान प्रदान कर।" 42 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए और मक्का में दफ़न हुए। कुछ लोगों का कहना है कि कूफ़ा के निकट दो मील की दूरी पर दफ़न हुए, जिसे अस-सविय्या कहा जाता है।

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अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू अब्दुर रहमान अब्दुल्लाह बिन मसऊद बिन ग़ाफ़िल बिन हबीब हुज़ली, एक बड़े सहाबी हैं। आरंभिक दौर में मुसलमान हुए, दोनों हिजरत की, बद्र तथा बाद के तमाम युद्धों में शामिल हुए, अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ रहे और आपके जूते उठाते रहे। फ़क़ीह तथा क़ारी सहाबा में शुमार होते हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "जो क़ुरआन को उसी तरह ताज़गी के साथ पढ़ना चाहे, जिस तरह उतरा था, वह इब्न उम्म-ए-अब्द की तरह पढ़े।" 32 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अब्दुल्लाह बिन मुग़फ़्फ़ल मुज़नी -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अब्दुल्लाह बिन मुग़फ़्फ़ल मुज़नी एक बड़े साहबी हैं। अबू सईद तथा अबू ज़ियाद कुनयत है। तबूक युद्ध के अवसर पर बहुत ज़्यादा रोने वाले लोगों में एक थे। पेड़ के नीचे होने वाली बैअत में शामिल रहे। उन दस लोगों में से भी एक थे, जिनको उमर -रज़ियल्लाह अन्हु- ने बसरा वालों को दीन सिखाने वालों को भेजा था। तुसतर नगर के द्वार से सबसे पहले वही दाख़िल हुए थे। सन् 57 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उसमान बिन अबू अल-आस -रज़ियल्लाहु अन्हु-

उसमान बिन अबू अल-आस बिन बिश्र सक़फ़ी एक बड़े सहाबी हैं। सक़ीफ़ के उस प्रतिनिधि मंडल में शामिल थे, जो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और मुसलमान हो गया। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको ताइफ़ में ज़कात वसूल करने के लिए नियुक्त किया था। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के जीवन काल, अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त में तथा उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के आरंभिक दो वर्ष वह वहीं रहे। उसके बाद उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको सन् 15 हिजरी में उमान तथा बहरैन में नियुक्त कर दिया। फिर बसरा में रहने लगे और वहीं मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त में मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों के अनुसार सन् 50 हिजरी और कुछ लोगों के अनुसार 51 हिजरी में।

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उसमान बिन अफ़्फ़ान -रज़ियल्लाहु अन्हु-

ख़लीफ़ा-ए-राशिद, अमीर अल मोमिनीन उसमान बिन अफ़्फ़ान बिन अबुल आस क़ुरशी उमवी। आरंभिक काल में इस्लाम ग्रहण करने वाले लोगों में से एक थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपनी बेटी रुक़य्या का विवाह उनसे कराया था। फिर जब उनकी मृत्यु हो गई, तो उनकी बहन उम्म-ए-कुलसूस से उनका विवाह कर दिया। यही वजह है कि उनको ज़ू अन-नूरैन की उपाधि मिली हुई थी। उन दस लोगों में से एक थे, जिनको जन्नत की ख़ुशख़बरी मिली हुई थी तथा उन छह लोगों में से भी एक थे, जिनसे अल्लाह के नबी के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- मृत्यु के समय खुश थे। उनके बारे में ही आपने कहा था : {क्या मैं उस व्यक्ति से हया (लज्जा) न करूँ, जिससे फ़रिश्ते हया करते हैं?} उनके बारे में यह भी फ़रमाया था : "उसे उपद्रव के शिकार होकर मरने तथा उसके बाद जन्नत प्राप्त करने की ख़ुशख़बरी दे दो।" उन्होंने कई बहुत बड़े-बड़े कार्य किए हैं, जो उनकी फ़ज़ीलत तथा इस्लाम के लिए उनकी सहायता को दर्शाते हैं। उन्होंने दोनों हिजरतें की। यानी हबशा की हिजरत तथा मदीने की हिजरत। तबूक युद्ध के समय जो आर्थिक तंगी का समय था, सेना को तैयार करने में मदद की। रूमा नामी कुआँ खुदवाया और उसे मुसलमानों के लिए सदक़ा कर दिया। मस्जिद-ए-नबवी का विस्तार किया। उनके ख़िलाफ़त काल ही में सारे मुसलमानों को एक मुसहफ़ पर एकत्र किया गया। उनके युग में मुसलमानों को अत्यधिक विजय पराप्त हुई तथा पूरब और पश्चीम दोनों दिशाओं में इस्लामी राज्य में बहुत विस्तार हुआ ।

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उसमान बिन मज़ऊन

उसमान बिन मज़ऊन बिन हबीब बिन वह्ब बिन हुज़ाफ़ा बिन जम्ह जुमही। इब्न-ए-इसहाक़ कहते हैं : तेरह लोगों के बाद मुसलमान हुए।हबशा की ओर पहली हिजरत में वह तथा उनके बेटे साइब ने एक दल के साथ हिजरत की थी। साद बिन वक़्क़ास -रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है, वह कहते हैं : अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उसमान बिन मज़ऊन के दुनिया से किनारा कर लेने के विचार का खंडन कर दिया था। यदि आप इसकी अनुमति देते, तो हम अपना बधिया करा लेते। आप मदीने में मृत्यु को प्राप्त होने वाले और बक़ी क़ब्रिस्तान में दफ़न होने वाले पहले मुहाजिर सहाबी हैं। आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है, वह कहती हैं : जब उसमान बिन मज़ऊन की मृत्यु हो गई, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनका बोसा लिया। उस समय आपकी आँखों से आँसू बह रहे थे। फिर जब अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के बेटे इबराहीम की मृत्यु हुई, तो फ़रमाया : "वह हमारे दुनिया से जाचुके सदाचारी साथी उसमान बिन मज़ऊन से जा मिले।" सन् 2 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

उरवा बिन ज़ुबैर

अबू अब्दुल्लाह उरवा बिन ज़ुबैर बिन अव्वाम क़ुरशी असदी इमाम तथा ताबेई। सन् 23 हिजरी में पैदा हुए। सात फ़क़ीहों में से एक, मदीने के फ़क़ीहों में से एक और श्रेष्ठ ताबेईन में से एक थे। चूँकि छोटे थे, इसलिए अपने पिता से बहुत कम हदीसें बयान की हैं। अपनी माँ असमा बिन्त अबू बक्र सिद्दीक़ और ख़ाला उम्म अल-मोमिनीन आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से हदीसें रिवायत की हैं। हमेशा आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- के साथ रहे और उनसे इस्लाम का ज्ञान प्राप्त किया। उमर बिन अब्दूलअज़ीज़ कहते हैं : (उरवा से बड़ा विद्वान इस समय मौजूद नहीं है।) सन् 94 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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उक़बा बिन आमिर जुहनी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

उक़बा बिन आमिर बिन अब्स जुहनी एक बड़े सहाबी हैं। एक विद्वान, क़ुरआन के क़ारी, साफ़-सुथरी ज़बान बोलने वाले, फ़क़ीह, फ़राइज के माहिर और बड़े शायर थे। मिस्र विजय के अवसर पर उपस्थित रहे, वहीं मुआविया बिन अबू सुफ़यान के ज़माने में मृत्यु को प्राप्त हुए और अल-मुक़त्तम में दफ़न हुए।

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अबू मसऊद बद्री -रज़ियल्लाहु अन्हु-

उक़बा बिन अम्र बिन सालबा अबू मसऊद बद्री अन्सारी एक बड़े सहाबी हैं। अक़बा की बैअत में उपस्थित थे। बद्र युद्ध में शामिल थे या नहीं, इस बारे में मतभेद है।जो लोग कहते हैं कि वह बद्र युद्ध में शामिल नहीं रहे,तो उनके निकट उन्हें बद्री इसलिए कहा गया कि वह बद्र में एक तालाब के पास रहते थे। बहुत-सी हदीसें रिवायत की हैं। विद्वान सहाबा में शुमार होते हैं। सन् 39 या 40 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू अल-हसन अली बिन अबू तालिब हाशिमी क़ुरशी एक बड़े सहाबी हैं। आप चौथे ख़लीफ़ा-ए-राशिद, आरंभिक दौर में इस्लाम ग्रहण करने वाले, जन्नत की ख़ुशख़बरी प्राप्त करने वाले दस लोगों में से एक और सबसे पहले इस्लाम ग्रहण करने वाले बच्चे थे। इस्लाम ग्रहण करते समय आप की आयु मात्र दस वर्ष थी। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के चचेरे भाई, सारे संसार की स्त्रियों की सरदार तथा अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पुत्री फ़ातिमा के पति और आपको दोनों नवासों एवं जन्नत के जवानों के सरदार हसन एवं हुसैन के पिता थे। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को उनसे बड़ा प्रेम था और मृत्यु के समय उनसे संतुष्ट थे। आपने उनको वही स्थान दिया था, जो मूसा -अलैहिस्सलाम- के निकट हारून को प्राप्त था। आपने उनसे कहा था : {क्या तुम इस बात से संतुष्ट नहीं हो कि मेरे निकट तुम्हारा वही स्थान हो, जो मूसा के निकट हारून का था? यह अलग बात है कि मेरे बाद कोई नबी नहीं होने वाला।} यह हदीस सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम की है। उम्म-ए-सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हा- का वर्णन है, वह कहती हैं : मैं इस बात की गवाही देती हूँ कि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को कहते हुए सुना है : {जिसने अली से मुहब्बत की, उसने मुझसे मुहब्बत की और जिसने मुझसे मुहब्बत की उसने अल्लाह से मुहब्बत की। तथा जिसने अली से नफ़रत की, उसने मुझसे नफ़रत की और जिसने मुझसे नफ़रत की, उसने सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह से नफ़रत की।} सन् 40 हिजरी को शहीद हुए।

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इब्न-ए-सीरीन

अबू बक्र मुहम्मद बिन सीरीन बसरी अन्सारी। अन्सार से इनका संबंध दासता से मुक्ति का था। ताबेई, इमाम तथा स्वप्न का अर्थ बताने के मामाले में एक बड़े विद्वान। उनके पिता सीरीन मशहूर सहाबी अनस बिन मालिक के दास थे, जिन्हें अनस -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने आज़ाद कर दिया था। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के अभी दो वर्ष बाक़ी थे कि उनका जन्म हुआ। स्वप्न का अर्थ बताने से संबंधित एक पुस्तक के बारे में कहा जाता है कि वह इन्होंने लिखी है, लेकिन यह बात सहीह नहीं है। क्योंकि हिजरी कैलेंडर की आरंभिक तीन सदियों में जितने लोगों ने भी उनकी जीवनी लिखी है, उन्होंने सिरे से इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि उन्होंने स्वप्न के अर्थ के संबंध में कोई किताब लिखी है, जबकि सबने इस बात का उल्लेख किया है कि वह इस विषय में माहिर थे। कुछ स्रोतों में उनके स्वप्न के अर्थ बताने के कुछ नमूने भी नक़ल किए गए हैं, लेकिन कहीं इस बात का उल्लेख नहीं है कि ये नमूने उनकी एक किताब से लिए गए हैं, जो उन्होंने लिखी थी। साथ ही उनसे नक़ल किए गए स्वप्नों के अर्थ उससे कम हैं, जो उस किताब में दर्ज हैं। 110 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुह़म्मद बिन मसलमा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मुहम्मद बिन मसलमा बिन सलमा बिन ख़ालिद अन्सारी औसी एक बड़े सहाबी हैं। तबूक के अतिरिक्त सारे युद्धों में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ शरीक रहे। बस तबूक युद्ध में शरीक नहीं हुए, क्योंकि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उनको अपने स्थान पर छोड़ गए थे। मिस्र विजय के समय उपस्थित रहे और सन् 43 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुसतौरिद बिन शद्दाद -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मुसतौरिद बिन शद्दाद बिन अम्र क़ुरशी फ़ेहरी एक बड़े सहाबी हैं। उनके साथ-साथ उनके पिता भी सहाबी हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु के समय बालक थे। मिस्र विजय के समय उपस्थित रहे। इसकन्दरिया में सन् 45 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मिसवर बिन मख़रमा -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

मिसवर बिन मख़रमा बिन नौफ़ल बिन उहैब क़ुरशी ज़ोहरी एक बड़े सहाबी हैं। सहाबी भी हैं और हदीस के वर्णनकर्ता भी। उनका शुमार नौमान बिन बशीर और अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर जैसे कम उम्र सहाबा में होता है। हमेशा उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- के साथ रहते थे और उनसे हदीस याद करते थे। मिसवर मक्का में हिजरत के दो वर्ष बाद पैदा हुए और वहीं रबी अल-आख़िर सन् 64 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू हामिद ग़ज़्ज़ाली

मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद तूसी, अबू हामिद ग़ज़्ज़ाली। ग़ज़्ज़ाली शब्द की यही वर्तनी इब्न समआनी, इब्न असीर, नववी, इब्न-ए-ख़ल्लिकान, इब्न-ए-दक़ीक़ अल-ईद, ज़हबी, सुबकी, सख़ावी तथा मुरतज़ा ज़बीदी ने लिखी है और यही सही भी है, हालाँकि इसके बारे में कुछ मतभेद भी है। 450 हिजरी को पैदा हुए। गज़्ज़ाली एक उसूली तथा शाफ़िई फ़क़ीह हैं। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। जैसे "इहया उलूम अद-दीन", "अल-मुसतसफ़ा फ़ी उसूल अल-फ़िक़्ह", फ़िक़्ह में "अल-वजीज़", "अल-बसीत" और "अल-वसीत"। पहले दर्शन शास्त्र की बारीकियों में उलझे, फिर वहाँ से लौट आए और उसका खंडन किया। इसके बाद इल्म-ए-कलाम के समुद्र में गोता लगाया, इसके सिद्धांत एवं भूमिकाएँ निर्धारित कीं और फिर जब इसकी असत्यता, अंतरविरोध और इसके झंडाबरदारों की बहसें सामने आईं, तो इससे दामन छुड़ा लिया। जिन दिनों वह फ़लसफ़ियों का खंडन कर रहे थे, उन दिनों इल्म-ए-कलाम में दिलचस्पी रखे हुए थे और उसी समय उनको हुज्जत अल-इस्लाम की उपाधि दी गई थी। क्योंकि उन्होंने फ़लसफ़ियों को निरोत्तर कर दिया था। फिर बातिनियत के रास्ते पर चले और उससे संबंधि ज्ञान प्राप्त किया और फिर उससे भी किनारा कर लिया और बातिनी समुदाय के गलत अक़ीदों की असत्यता तथा क़ुरआनी आयतों और हदीसों के साथ उनके खिलवाड़ को स्पष्ट किया और उसके बाद तसव्वुफ़ के मार्ग पर चल पड़े। इब्न सलाह कहते हैं : (अबू हामिद के बारे में बहुत-सी बातें कही गई हैं और उन्होंने भी बहुत सारी बातें कही हैं। जहाँ तक उनकी इन किताबों (सत्य के विरुद्ध किताबों) की बात है, तो उनकी ओर तवज्जो नहीं दी जाएगी। रही बात इस व्यक्ति की, तो इसके बारे में कुछ कहने से गुरेज़ किया जाएगा और इसका मामला अल्लाह के हवाले कर दिया जाएगा।) ज़हबी कहते हैं : (इस व्यक्ति ने फ़लसफ़ियों के खंडन में "अत-तहाफ़ुत" नामी किताब लिखकर उनका कच्चा-चिट्ठा खोला है, तथा कुछ स्थानों में यह समझकर उनसे सहमति व्यक्त की है कि यह सही तथा इस्लाम के अनुरूप हैं। इनके पास हदीस का ज्ञान नहीं था और न ही सुन्नत-ए-नबवी की जानकारी थी, जो अक़्ल को सही दिशा देने का काम करती है। उनहोंने "रसाइल इख़वान अस-सफ़ा" नामी किताब को बड़े ध्यान से पढ़ता था, जो एक लाइलाज बीमारी तथा जानलेवा विष है। अगर अबू हामिद बड़े कुशाग्र बुद्धि वाले तथा निष्ठावान लोगों में से न होते, तो नष्ट हो जाते। अतः उनकी इन किताबों से हर हाल में सावधान रहो और अपने धर्म को इन जैसे लोगों के पैदा किए हुए संदेहों से बचाओ, वरना तुम भी संदेहों के भँवर में फँस जाओगे।) अबू बक्र इब्न अल-अरबी कहते हैं : (हमारे शैख़ अबू हामिद फ़लसफ़ियों को निगल गए और उसके बाद उनकी उलटी कर देना चाहा, लेकिन कर नहीं सके।) क़ाज़ी अयाज़ कहते हैं : (शैख़ अबू हामिद गलत-सलत मालूमात उपलब्ध कराने वाले और बुरी किताबों के लेखक हैं। तसव्वुफ़ के संबंध में बड़ी अतिशयोक्ति की, उसके बचाव में खुलकर खड़े हुए और उसके प्रचारक बन गए। तसव्वुफ़ पर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक -यानी इहया उलूम अद-दीन- लिखी, जिसके कई स्थानों पर उनकी पकड़ हुई है। उनके बारे में बहुत-से लोगों की राय बुरी है। जबकि उनके अंदर क्या था, यह अल्लाह ही बेहतर जानता है। हमारे यहाँ बादशाह का आदेश तथा फ़क़ीहों का फ़तवा आया था कि उनकी इस किताब को जला दिया जाए और उससे दूर रहा जाए, जिसका पालन किया गया।) इब्न अल-जौज़ी कहते हैं : (अबू हामिद ने "इहया उलूम अद-दीन" लिखी और उसमें झूठी हदीसों का अंबार लगा दिया। उनको पता भी नहीं था कि यह हदीसें झूठी हैं। उन्होंने कश्फ़ के बारे में बात की और फ़िक़्ह के सिद्धांतों से बाहर निकल गए।) सन् 505 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुआज़ बिन जबल -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मुआज़ बिन जबल बिन अम्र अन्सारी ख़ज़रजी एक बड़े सहाबी, फ़क़ीहों के इमाम, उलेमा के खज़ाना और इस उम्मत में हलाल तथा हराम की सबसे अधिक जानकारी रखने वाले व्यक्ति हैं। अक़बा, बद्र युद्ध तथा तमाम युद्धों में शरीक रहे। अन्सारी नौजवानों में सबसे अधिक विनम्रता, हया और दानशीलता के मालिक थे। उनकी फ़ज़ीलत के बारे में कई हदीसें आई हुई हैं।

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माक़िल बिन यसार -रज़ियल्लाहु अन्हु-

माफ़िल बिन यसार बिन अब्दुल्लाह मुज़नी बसरी एक बड़े सहाबी हैं। सुलह हुदैबिया से पहले मुसलमान हुए। बैअत-ए-रिज़वान करने वाले लोगों में शामिल रहे और अबू बक्र सिद्दीक़ -रज़ियल्लाहु अन्हु- के ख़िलाफ़त काल में इस्लाम छोड़ कर निकल जाने वाले लोगों से होने वाले युद्धों में भी शरीक हुए। फ़ारस क्षेत्र को फ़त्ह करने के लिए साद बिन अबू वक़्क़ास की अगुवाई में जो सेना गई थी, उसमें शामिल रहे और उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- के युग में अन्य युद्धों में भी शामिल हुए। उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको बसरा का गवरनर बना दिया था, बसरा ही में रहे और मुआविया की ख़िलाफ़त के अंतिम काल में वहीं मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुऐक़ीब अल-दौसी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मुऐक़ीब बिन अबू फ़ातिमा दौसी एक बड़े सहाबी हैं। आरंभिक काल में मक्का में मुसलमान हुए। हबशा की ओर दूसरी हिजरत जो हुई तो उसमें शामिल रहे और फिर मदीने की ओर हिजरत की। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की अंगूठी की देखभाल पर नियुक्त थे। अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने उनको युद्ध के अवसर पर बिना लड़ाई किए प्राप्त होने वाले धन का ज़िम्मेवार बनाया था और उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने बैतुल माल का ज़िम्मेवार बनाया था। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के अंतिम दौर में मृत्यु को प्राप्त हुए। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- की ख़िलाफ़त के अंतिम दौर में 40 हिजरी में उनकी मृत्यु हुई।

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मुग़ीरा बिन शोबा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मुग़ीरा बिन शोबा बिन अबू आमिर सक़फ़ी एक बड़े सहाबी हैं। बड़े बहादुर तथा राजनीति दाँव पेंच के माहिर सहाबी थे। खनदक़ युद्ध के वर्ष मुसलमान हुए और उसके बाद के युद्धों में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ शरीक रहे। बैअत-ए-रिज़वान में भी शामिल रहे। उनको मुग़ीरा अर-राय कहा जाता था। बहुत ही चतुर इन्सान थे। मुआविया की ख़िलाफत काल में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुआविया बिन अबू सुफ़यान -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू अब्दुर रहमान मुआविया बिन अबू सुफ़यान सख़्र बिन हर्ब बिन उमय्या क़ुरशी अउमवी एक बड़े सहाबी हैं, जो अमीर अल-मोमिनीन भी रहे। कुछ लोगों का कहना है कि वह अपने पिता से पहले छूटे हुए उमरे की अदायगी के समय मुसलमान हो गए थे, लेकिन अपने पिता के भय से अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से नहीं मिले। उनके इस्लाम का इज़हार मक्का विजय के दिन ही हुआ। वह वह्य लिखने वाले लोगों में से एक थे। जब अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- ख़लीफ़ा बने, तो उनके भाई यज़ीद बिन अबू सुफ़यान की गवरनरी काल में सेना के एक भाग की अगुवाई उनके हवाले कर दी। उनकी अगुवाई ही में सैदा, इरक़ा, जुबैल तथा बैरूत आदि नगर पर विजय प्राप्त हुई। जब उमर बिन ख़त्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- ख़लीफ़ा बने, तो उनको उरदुन का गवरनर बना दिया। फिर उनके भाई यज़ीद की मृत्यु के बाद उनको दमिश्क़ का गवरनर बना दिया। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- का दौर आया, तो उनको पूरे शाम क्षेत्र का गवरनर बना दिया और उस क्षेत्र के विभिन्न नगरों के अमीरों को उनके अधीन बना दिया। उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हत्या के बाद अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अन्हु- ख़लीफ़ा बने, तो दोनों के बीच इस मसले में मतभेद हो गया कि उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- की हत्या के बाद क्या किया जाना चाहिए। मतभेद का यह सिलसिला जारी रहा, यहाँ तक कि इब्न-ए-मुलजिम ख़ारिजी ने अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- की भी हत्या कर दी। अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- के बाद उनके बेटे हसन -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने ख़िलाफ़त की बागडोर संभाली, लेकिन 41 हिजरी में उनके तथा मुआविया के बीच होने वाले एक करार के अनुसार खिलाफ़त मुआविया -रज़ियल्लाहु अन्हु- के हवाले कर खुद उससे अलग हो गए। मुआविया के बारे में दो प्रकार के लोग पथभ्रष्टता के शिकार हुए हैं। कुछ लोगों ने उनके प्रेम तथा तरफ़दारी में अतिशयोक्ति की है, और कुछ लोगों ने उनसे दुश्मनी तथा नफ़रत में अतिशयोक्ति की है और उनको मुनाफ़िक़ तथा काफ़िर तक कह दिया है। इब्ने हज़्म कहते हैं : "फिर हसन के हाथ पर बैअत की गई। लेकिन बाद में उन्होंने ख़िलाफ़त मुआविया के हवाले कर दी, जबकि इस बात में किसी का कोई मतभेद नहीं है कि शेष सहाबा में ऐसे लोग मौजूद थे, जो उन दोनों से श्रेष्ट थे, जिन्होंने मक्का विजय से पहले अपना धन खर्च किया था और युद्ध किया था। इन सारे लोगों ने, शुरू से अंत तक, मुआविया के हाथ पर बैअत कर ली और उनकी ख़िलाफ़त को स्वीकार कर लिया। निःसंदेह यह इजमा (मतैक्य) है। जबकि एक इजमा और भी है कि अधिक श्रेष्ठ की उपस्थिति में कम श्रेष्ठ को ख़लीफ़ा बनाया जा सकता है।" सन् 60 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मिक़दाद बिन असवद -रज़ियल्लाहु अन्हु-

मिक़दाद बिन असवद किंदी यानी मिक़दाद बिन अम्र बिन सालबा बिन मालिक बिन रबीआ बिन आमिर बिन मतरूद बहरानी और कुछ लोगों के अनुसार हज़रमी। उनका पालन-पोषण असवद बिन अब्द यग़ूस के यहाँ हुआ था, इसलिए उनकी ओर मनसूब हो गए। एक बड़े सहाबी हैं। आरंभिक दौर में मुसलमान हुए और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की चचेरी बहन ज़बाआ बिन्त ज़ुबैर बिन अब्द अल-मुत्तलिब से शादी की, हबशा तथा मदीने की ओर हिजरत की और बद्र एवं उसके बाद होने वाले सभी युद्धों में शामिल हुए। बद्र युद्ध के दिन घोड़े पर सवार होकर युद्ध किया। सन् 33 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मैमूना बिन्त हारिस -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म अल-मोमिनीन मैमूना बिन्त हारिस हिलालिया आमिरीया। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पत्नी। आपसे उनका विवाह ज़ू-अल-क़ादा सन् 7 हिजरी को हुआ था। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के निकाह में आने वाली वह अंतिम स्त्री थीं। सन् 51 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुईं।

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अबू बरज़ा असलमी -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अबू बरज़ा असलमी। उनका नाम क्या है, इस संबंध में कई मत हैं। कुछ लोगों के अनुसार, जो अधिक सही भी है, उनका नाम नज़ला बिन उबैद है। कुछ लोगों ने नज़ला बिन अम्र भी कहा है। एक बड़े सहाबी हैं। मक्का विजय से पहले मुसलमान हुए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ सात युद्धों में शामिल हुए। सन् 65 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

नोमान बिन बशीर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

नोमान बिन बशीर बिन साद बिन सालबा अन्सारी ख़ज़रजी एक बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की मृत्यु से 8 वर्ष पहले पैदा हुए। एक उदार दिल के मालिक तथा दानशील शायर थे। मुआविया के गवरनरों में शामिल थे। एक अवधि तक कूफ़ा के गवरनर रहे और फिर फ़ज़ाला के बाद दमिश्क़ के क़ाज़ी बने और उसके बाद हिम्स के गवरनर बने। बीरीन नामी एक बस्ती में मर्ज राहित युद्ध के बाद ख़ालिद बिन ख़ली नाम के एक व्यक्ति ने उस समय उनकी हत्या कर दी, जब उन्होंने हिम्स वालों को अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर की बैअत करने का आह्वान किया। यह सन् 64 के अंत की बात है।

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अबू हनीफ़ा

अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित बिन ज़ूती कूफ़ी, इमाम और इस उम्मत के फ़क़ीह। इबादतगुज़ार तथा परहेज़गार थे। हराम कामों से बहुत ज़्यादा रोकने वाले थे। उनको दुनिया तथा बहुत-सा धन पेश किया गया, लेकिन उसकी परवाह नहीं की। क़ज़ा का पद या बैत अल-माल की ज़िम्मेदारी ग्रहण करने के लिए कोड़े खाए, लेकिन इनकार कर दिया। ज़हबी कहते हैं : (उनकी जीवनी लिखने के लिए दो खंडों की आवश्यकता है। अल्लाह उन से राज़ी हो, और उनपर अल्लाह की रहमत हो) इमाम अहमद कहते हैं : (अबू हनीफ़ा ज्ञान, परहेज़गारी, जुह्द और आख़िरत को प्राथमिकता देने के उस स्थान पर थे, जहाँ कोई पहुँच नहीं सकता। उन्हें मन्सूर की ओर से पद ग्रहण करने के लिए कोड़े खाने पड़े, लेकिन ग्रहण नहीं किया। उनपर अल्लाह की कृपा तथा दया की वर्षा हो।) इमाम शाफ़िई कहते हैं : (इमाम मालिक बिन अनस से पूछा गया कि क्या आपने अबू हनीफ़ा को देखा तथा उनसे तर्क-वितर्क किया है? तो उन्होंने उत्तर दिया कि हाँ, मैंने एक ऐसे व्यक्ति को देखा है कि अगर वह इस पत्थर के खंबे को देखकर कह दें कि यह सोने का है, तो इसे प्रमाणित कर दें।) सन् 150 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

उम्म-ए-सलमा -रज़ियल्लाहु अन्हा-

उम्म अल-मोमिनीन उम्म-ए-सलमा हिंद बिन्त अबू उमय्या हुज़ैफ़ा बिन मुग़ीरा बिन अब्दुल्लाह मख़ज़ूमिया। उनसे अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने शव्वाल सन् 4 हिजरी में निकाह किया था। कुछ लोगों ने इससे पहले निकाह होने की भी बात कही है। आरंभिक काल में हिजरत करने वाले लोगों में शामिल थीं। उनका शुमार फ़क़ीह सहाबियात में होता है। बड़ी सुंदर थीं। लगभग 90 वर्ष जीवित रहीं। सबसे अंत में मृत्यु को प्राप्त होने वाली उम्म अल-मोमनीन थीं। सन् 59 या 64 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुईं। मृत्यु का वर्ष और भी बताया गया है।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा-

अबू अब्दुर रहमान अब्दुल्लाह बिन उमर बिन ख़त्ताब क़ुरशी अदवी, इमाम, आदर्श चरित्र के मालिक इन्सान तथा एक बड़े सहाबी थे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नबी बनने के दो वर्ष बाद पैदा हुए। छोटे ही थे कि अपने पिता के साथ मुसलमान हो गए। अभी जवान भी न हुए थे कि अपने पिता के साथ हिजरत की। उहुद के दिन छोटा होने की वजह से युद्ध में शरीक होने का अवसर न मिल सका। सबसे पहले खनदक़ युद्ध में शरीक हुए। पेड़ के नीचे बैअत करने वालों में भी शामिल रहे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के एक-एक कृत्य की नक़ल करते थे। इबादतगुज़ार, ज़ाहिद, दानशील, फ़क़ीह तथा दीनदार थे। फ़ितनों से दूर रहे और किसी भी फ़ितने में शामिल नहीं हुए। बहुत ज़्यादा खर्च करते तथा सदक़ा करते थे। बहुत बड़ी संख्या में हदीस रिवायत करने वाले लोगों में शामिल हैं। इस मामले में अबू हुरैरा के बाद उन्हीं का नंबर आता है। सन् 73 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

में अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू बंगला तगालोग भारतीय मलयालम तिलगू थाई

वरक़ा बिन नौफ़ल

वरक़ा बिन नौफ़ल बिन असद बिन अब्द अल-उज़्ज़ा बिन क़ुसय क़ुरशी असदी, अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की पत्नी ख़दीजा के चचेरे भाई। सहाबी थे या नहीं, इस बारे में मतभेद है। तबरी, बग़वी, इब्न क़ाने तथा इब्न सकन जैसे कुछ उलेमा ने उनको सहाबी माना है, तो कुछ उलेमा ने सहाबी नहीं माना है और कहा है कि वह अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर ईमान तो लाए, लेकिन वह्य का सिलसिला बंद रहने की अवधि ही में मृत्यु को प्राप्त हो गए। इब्न-ए-हजर कहते हैं : "इससे पता चलता है कि उन्होंने आपके नबी होने का इक़रार किया, लेकिन इससे पहले कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- लोगों को इस्लाम की ओर बुलाते, मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस तरह वह बुहैरा के समान हुए। उनको सहाबी मानने में संदेह है।" जबकि कुछ उलेमा ने उनके बारे में ख़ामोशी बरती है और उलेमा के अलग-अलग मतों को बयान किया है। किरमानी कहते हैं : "यदि आप पूछें कि आप वरक़ा के बारे में क्या कहेंगे? क्या उनके मोमिन होने का निर्णय दिया जाएगा? तो मैं कहूँगा : इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका ईसा -अलैहिस्सलाम- पर ईमान था। रही बात हमारे नबी पर ईमान लाने की, तो यह मालूम नहीं हो सका है कि ईसा -अलैहिस्सलाम- का धर्म उनकी मृत्यु के समय निरस्त हुआ था या नहीं? अगर यह साबित हो जाए कि उनका धर्म उस समय निरस्त हो चुका था, तो उचित बात यह है कि ईमान पुष्टि करने का नाम है और उन्होंने आपकी पुष्टि कर दी थी और ईमान के विपरीत कोई बात नहीं कही थी।" अतः अधिक उचित बात यही लगती है कि वह एकेश्वरवादी मुसलमान थे, लेकिन सहाबा में शुमार नहीं होंगे। क्योंकि उनकी मिर्तुय उस अवधि में हुई थी जो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के नबी बनने और आप के रसूल बनने के बीच का है।

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इतबान बिन मालिक

इतबान बिन मालिक बिन अम्र बिन इजलान अन्सारी ख़ज़रजी सालिमी एक बड़े सहाबी हैं। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको उमर बिन ख़त्ताब का भाई बनाया था। बद्र, उहुद एवं ख़नदक़ युद्धों में शामिल रहे। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के ज़माने ही में उनकी आँखें चली गई थीं। मुआविया बिन अबू सुफ़यान की ख़िलाफ़त के बीच में मृत्यु को प्राप्त हुए। उनकी कोई संतान नहीं थी।

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अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफ़ा -रज़ियल्लाहु अन्हु-

अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफ़ा बिन क़ैस क़ुरशी सहमी एक बड़े सहाबी और आरंभिक काल में इस्लाम ग्रहण करने वाले लोगों में से हैं। कुछ लोगों का कहना है कि बद्र युद्ध में शामिल हुए। उनके मक़ाम का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने रूम की ओर एक सेना भेजी, जिसमें अब्दुल्लाह बिन हुज़ाफ़ा भी शामिल थे। वह युद्ध में क़ैद कर लिए गए, तो रूमी बादशाह ने उनसे कहा कि तुम ईसाई बन जाओ, मैं तुम्हें राज-पाठ में हिस्सेदार बना दूँगा। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद बादशाह के आदेश पर उनको सूली पर चढ़ा दिया गया और उन्हें तीर का निशाना बनाने का आदेश दिया। लेकिन वह इससे भी नहीं घबराए। अतः उनको उतार दिया गया। फिर एक हांडी में पानी डालकर उसे अच्छी तरह गर्म होने दिया गया और उसके बाद एक क़ैदी को उसमें डाल दिया गया, जो क्षण भर में जल गया। अब उनसे कहा गया कि यदि वह ईसाई धर्म ग्रहण नहीं करेंगे, तो उनको भी हांडी में डाल दिया जाएगा। जब उनको हांडी के पास ले जाया गया, तो रोने लगे। यह देख उनको वापस लाया गया और रोने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने उत्तर दिया कि मेरे दिल में यह अरमान है कि काश मेरे पास सौ प्राण होते और हर एक को इसी तरह गर्म पानी में डाला जाता। यह सुन बादशाह आश्चर्यचकित रह गया और बोला कि यदि तुम मेरे माथे को चूम लो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। इसपर उन्होंने कहा कि क्या तुम मेरे सारे साथियों को भी छोड़ दोगे? उसने हाँ में उत्तर दिया तो उन्हों ने उसके सर को चूमा और इस तरह अपने सारे साथियों को छुड़ा लिया। सब लोगों को साथ लेकर उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- के पास आए, तो उमर -रज़ियल्लाहु अन्हु- खड़े हुए और उनके सर को चूमा। लग-भग सन् 33 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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इमरान बिन हुसैन

अबू नुज़ैद इमरान बिन हुसैन बिन उबैद बिन ख़ल्फ़ ख़ुज़ाई एक बड़े सहाबी हैं। ख़ैबर युद्ध के साल मुसलमान हुए और कई युद्धों में शरीक हुए। मक्का विजय के दिन अपने क़बीले का झंडा उठाए हुए थे। कई हदीसें रिवायत की हैं। ज्ञानी एवं फ़क़ीह सहाबा में शुमार होते थे। बसरा के क़ाज़ी (न्यायाधीश) बने। इब्न-ए-सीरीन ने उनके बारे में कहा है कि बसरा आने वाले सबसे उत्तम सहाबी इमरान तथा अबू बकरा हैं। हसन बसरी क़सम खाकर कहते थे कि इमरान से बेहतर व्यक्ति बसरा नहीं आया है। सन् 52 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए। कुछ लोगों ने 53 हिजरी भी कहा है।

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इब्न-ए-आशूर

मुहम्मद ताहिर बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद ताहिर बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद शाज़िली बिन अब्द अल-क़ादिर बिन महम्मद बिन आशूर। शरीयत, भाषा एवं साहित्य आदि कई शास्त्रों में प्रमुख स्थान के मालिक तथा माहिर थे। फ्रांसीसी भाषा बड़ी अच्छी जानते थे। दमिश्क़ एवं क़ाहिरा में अरबी भाषा अकादमी के एक संवाददाता सदस्य रहे। उन्होंने शिक्षण, न्यायपालिका और फतवा जैसे प्रमुख वैज्ञानिक और प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। ज़ैतूना युनिवर्सिटी के वाइस चांस्लर भी बने। दसियों किताबें लिखीं। जैसे उनकी तफ़सीर जो "अत-तहरीर व अत-तनवीर" के नाम से जानी जाती है। और दुसरी किताब "मक़ासिद अश-शरीअह" है। उनके मित्र मुहम्मद ख़ज़िर हुसैन ने उनके बारे में कहा है : (प्रोफेसर साहब ज़बान व बयान के माहिर इन्सान थे। गहरे ज्ञान तथा मज़बूत दृष्टि के साथ-साथ साफ़ ज़ौक तथा भाषा की गहरी जानकारी रखते थे। मैं उनके पास ऐसी ज़बान देखता था, जिसके लहजे में सच्चाई थी। ऐसा साहस देखता था, जो ऊचाइयों को छूने के लिए आतुर रहता था। काम करने की ऐसी लगन थी कि कभी थकते नहीं थे। धर्म के आवश्यक कार्यों की पाबंदी करते थे। सारांश यह कि मैं उनके विशाल ज्ञान से जितना प्रभावित था, उससे कम प्रभावित उनके आदर्श चरित्र से नहीं था।) सन् 1393 हिजरी में मृत्यु को प्राप्त हुए।

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अबू बक्र जज़ाइरी

अबू बक्र जाबिर बिन मूसा बिन अब्द अल-क़ादिर बिन जाबिर जज़ाइरी। चालीस वर्ष से अधिक समय तक मस्जिद-ए-नबवी में प्रध्यापक रहे। कई किताबें लिखीं। जैसे "मिनहाज अल-मुस्लिम", "अक़ीदा अल-मोमिन" तथा "ऐसर अत-तफ़ासीर" आदि। इसके साथ ही कई ज्ञान एवं आह्वान कार्यो में लगे रहे। 97 वर्ष जीवित रहे और 4 ज़ुल-हिज्जा सन् 1439 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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मुहम्मद अमीन शनक़ीती

मुहम्मद अमीन बिन मुहम्मद मुख़तार बिन अब्द अल-क़ादिर बिन मुहम्मद जकनी शनक़ीती। सन् 1325 हिजरी में पैदा हुए। सुप्रीम उलेमा काउंसिल के सदस्य रहे, मस्जिद-ए-नबवी के प्रध्यापक रहे, जामिया इस्लामिया मदीना मुनव्वरा की समिति के सदस्य रहे और कई किताबें लिखीं। जैसे "अज़वा अल-बयान लि-तफ़सीर अल-क़ुरआन बि-अल-कुरआन", "आदाब अल-बह्स व अल-मुनाज़रह", "मुज़क्करह फ़ी उसूल अल-फ़िक़्ह" तथा "दफ़अ ईहाम अल-इज़तिराब अन आय अल-किताब" आदि। उनकी लिखी हुई सारी किताबें 19 खंडों में "आसार अश-शैख़ अल-अल्लामा मुहम्मद अल-अमीन अश-शनक़ीती" के नाम से छप चुकी है। सन् 1393 हिजरी को मृत्यु को प्राप्त हुए।

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