आस्था या कर्म के मामले में शरीयत की बताई हुई सीमा से आगे बढ़ना, चाहे वह परिमाण में हो, विशेषण में हो, आस्था में हो या फिर कर्म में।
धर्म में कोई ऐसा नया तरीक़ा जारी करना, जिसका उद्देश्य यह हो कि उसपर अमल करके अल्लाह की इबादत में बढ़ोतरी की जाए।
हर वह नई चीज़ जिसे धर्म के भाग के रूप में शुरू किया जाए और शरीयत के अंदर उसका कोई प्रमाण न हो। चाहे उसका संबंध आस्था से हो या इबादत से हो।